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खुशियों की तलाश अध्याय 2 भाग 1

 यार अब तुम्हारी शादी कर दें तो जिम्मेदारी पूरी हो मेरी..!! आप सोच रहे होंगे कि ये क्या है...मैं किसकी शादी करवाने लग गया..तो मेरी प्रिय जनता जनार्दन ये मेरे शब्द नहीं...ऋषभ के पिता के शब्द है..!! जी हाँ वही ऋषभ जिसे आपने मेरे उपन्यास #खुशियों_के_तलाश #अध्याय_1 में पढ़ा था..!! अब उसके जीवन के #अध्याय_2 की शुरुआत हो चुकी है...जिसका #भाग_1 लेकर आपके सामने हूँ...!! माँ के देहांत के बाद सब कुछ बस चल रहा था...!! ऋषभ का, पिता का, ऋषभ के भाई भाभी का..!! मृत्यु दुःखदाई होती है सभी के जीवन में...ऋषभ सभी को यह बताया करता था कि उसकी माँ हमेशा कहा करती थी कि जीवन में सभी इच्छाओं की पूर्ति के बाद इच्छामृत्यु सम्भव है...और जब मां की लगभग सभी इच्छाएं पूर्ण हो चुकी थी सिवाय ऋषभ की शादी के तो ऐसे में...माँ का देहांत हो जाना तो काफ़ी दुखदाई था..क्योंकि ऋषभ ने माँ के सपनों के लिए ही तो आशा से प्रेम विवाह नहीं किया था..!! और अब जब विवाह की बारी आई तो माँ का आकस्मिक निधन😢 सब कुछ मानो रूठ सा गया था...फिर भी उसके पिता ने माँ की जिम्मेदारी को निभाते हुए... किचन में खाना बनाते वक्त एक दिन कहा-  यार अब ...

व्यापार नहीं प्यार

 देश व्यापार से नहीं प्यार से महान बनेगा..!! भय, लालच, क्रोध की वजह से आज समाज जातियों, धर्मो, क्षेत्रो, लिंगो के भेदभाव में अलग होता जा रहा है...!! इसका दुष्परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि न तो आप स्वयं खुश है और न ही समाज खुश है..!! यदि आपको स्वयं को खुश रखना है और अपने जीवन के असली मूल्य को पहचानना है..!! आप सभी के जीवन को खुशियों से भरने के लिए ही राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संगठन का निर्माण हुआ है..!! जो कि पूर्णतया निःशुल्क है..जहां सिर्फ प्यार बांटा जाता है...किसी भी इंसान को व्यापार की दृष्टिकोण से नहीं देखा जाता है..!! क्योंकि हमारा देश भारत अपनी संस्कृति व संस्कार से महान बना है न कि किसी व्यापार से..!! #NSSUI सन्गठन दलाली नहीं करता..!! इसीलिये दलालों को अच्छी शिक्षा देने का भरसक प्रयास करता है..!! जीवन में पैसे कमाने का लक्ष्य सभी का है और उस पैसे से खरीदी जाते है सामान और उस सामान से मिलता है सुख..!! लेकिन उन सभी की सीमाओं से बढ़कर जिनकी इच्छा बढ़ती जाती है वह है आपकी लालसा..!! आप सभी के साईकल के बाद बाइक, फिर कार, फिर और बड़ी कार के सपने होते है...खाने और पहनने में भी आपके...

Fast Food

 #fastfood  ये तुम खा लो, मैं तुम्हारा वाला खा लेता हूँ..!! नहीं नहीं नहीं...मैं अपना खाऊँगी..!! अरे झूठा खाने से प्यार बढ़ता है...!! वो सब कहने की बात है... मेरा पेट तो नहीं भरता है..!! और न ही मुझे शेयर करने की आदत है..!! अब प्यार बढ़े चाहे न बढ़े..!! ऐसी नोक झोंक हर भाई बहन, हर दोस्त, हर रिश्ते में होती है...बहुत कम ऐसे लोग होते है...जो अपना निवाला दूसरों के सामने पेश करते है..!! जिंदगी के सफर में ऐसे चलना भी एक नाम याद में छोड़ जाता है..!! कि वो ऐसी थी, वो वैसी थी... © Nikhil S Yuva

दोस्ती का पंचनामा

#दोस्ती_का_पंचनामा दोस्ती का दम भरने वालों को आज समय न मिल पाया..!! सोचना कि तुम्हारा प्रेम कहाँ है..?? जिस प्रेम के पीछे तुम भाग रहे हो, वो निराधार है..!! जिस किसी को दोस्ती के रिश्ते के बारे में जानना है, रुकिये थोड़ा समझाते है..!! आप अपने जीवन की आधारशिला माँ पिता से सबसे पहला प्रेम पाते है, उसके पश्चात आप अपने बड़ो से प्रेम पाते है...उसके बाद आप जो उनसे पाते है, उसे दूसरों को जब देते है तो उससे आपको दोस्ती नाम का रिश्ता मिलता है..!! उसके बाद प्यार नाम का रिश्ता बनता है और फिर शादी विवाह जैसे बंधनों में बंधकर दोस्ती का रिश्ता अन्य रिश्तेदारों में बदल जाता है..!! फिर आप नए रिश्तों को जन्म देकर माँ पिता बन जाते है...और फिर एक नई वंशावली तैयार होती है..!! तो क्या समझे दोस्ती से ही शुरू होता है आपका प्रेम जो आप दूसरों को देते है...उससे पहले आप मां व पिता, भाई-बहन से प्रेम पा रहे होते है..!! और जिस प्रेम को देकर आपने सभी को पाया था, आज वो लोग आपसे सवाल उठा रहे है...कि कहाँ गया वो प्रेम, जो तुम हमसे किया करते थे..?? प्रेमिका/प्रेमी से पूछा तो जवाब आया- वैलेंटाइन डे हम मनाते है..!! हम मिलते ...

खुशियों की तलाश भाग 16

  ऋषभ सबकी माँ को अपनी माँ मानता था..!! प्रेम की इंतिहान देखिये उसकी...!! और आज उसकी माँ नहीं थी..!! #खुशियों_की_तलाश #सुमन_स्मृति #भाग 16 ऋषभ की माँ के आकस्मिक निधन के पश्चात ऋषभ अकेला पड़ गया था, अब उसको खाना खिलाने वाले हाथ भी न थे, और न ही हाथ बांधकर मारने वाले हाथ..!! ऋषभ के पिता भी पोस्टमार्टम हाउस पहुँचे तो जो उनका साथ छोड़कर गयी उनकी पत्नी थी , उन्होंने अपने प्रेमी को देखा था, वो अब उनकी दुनिया मे नहीं थी..!! लेकिन दूसरा प्रेम उनका बेटा भी था, वो चाहते तो अपना गम अपने बेटे के साथ बांट सकते थे लेकिन उन्होंने अपना दुःख नहीं बांटा..!! ऋषभ उनके दुःख को समझ सकता था, पर ऋषभ के दुःख को समझने वाला कोई नहीं था...ऋषभ के सिर से साया उठ गया था माँ की ममता के आँचल का..!! भाई रात में लौटा, उसने भी आते ही सबसे पहले माँ की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू कर दी...बीमार तो थे वो भी, पर पहले जिम्मेदारी उसके बाद शरीर देखता था वो..!! उसने भी जिम्मेदारी पूर्वक सारे काम काज में लग गया, जैसे ऋषभ की दवाईयाँ लाना, अपनी पत्नी के लिए दवाएँ लाना, मां की तेरहवीं के लिए संसाधन जुटाना क्योंकि ऋषभ को ...

खुशियों की तलाश भाग 15

बिस्तर पर बीमार होकर मरने से बेहतर बिना तकलीफ के मर जाना होता है..!! अपने घर के बुजुर्गों व समाज की हालत देखकर यह बात ऋषभ की माँ सुमन हमेशा कहा करती थी..!! सुमन ने भी काफ़ी वक़्त बिस्तर पर बिताया था, लेकिन उसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इतना कुछ उसके साथ होने के बाद भी वो चलायमान थी, उसने हिम्मत नहीं छोड़ी थी... और कहते भी है कि जीवन इच्छा अनुरूप ही चलता है..!! जब तक जीने की इच्छा हो तब तक आप जी सकते है, आपने हिम्मत छोड़ी तो शरीर आपका साथ छोड़ देता है..!! सुमन अस्पताल में लेटे लेटे हजारों संबंधों के ताने बाने बुन रही थी, उसके पास सिवाय उसके बेटे ऋषभ के कोई भी मौजूद नहीं था, वो अपने पति, अपने बेटे-बहु, अपनी बहनों, अपने देवरों, अपने भाईयों जैसे हर एक रिश्ते को याद कर रही थी, क्योंकि तत्कालीन कोरोनाकाल में उसने कईयों के परिवार जनों में गमी का संदेश सुना था..!! कोरोनाकाल में मरीज का इलाज़ नाम मात्र का चल रहा था क्योंकि डॉक्टर तक को नहीं पता था कि इस बीमारी का इलाज़ क्या है..?? सरकारी तंत्र चुनाव में मस्त था, स्वास्थ्य विभाग उस तंत्र से अछूता कैसे रह सकता है, दवाएं और इलाज़ भी चुनावी वादों की तरह...

खुशियों की तलाश भाग 14

मुझे समझना हर किसी के बस की बात नहीं..और जो समझ नहीं सका वो समझदार नहीं..!! ऐसे विचारों को अपने मन में बैठाए हुए ऋषभ अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाने के लिए इवेंट मैनेजमेंट कंपनी और एनजीओ के बेहतरीन मिश्रण का प्लान बना चुका था..!! उसके मन में सामाजिक सुधार करने की प्रेरणा जो कि उसकी माँ के द्वारा उसे मिलती थी, वो उसे एक नया रूप देना चाहता था जिससे समाज में विकास और एकरूपता व्याप्त हो जाएगी ऐसा उसका मानना था..!! उसने शादी विवाह, जन्मदिन, मृत्यु संस्कार जैसे सभी इवेंट्स को सामाजिक प्रेम की अवधारणा से बिज़नेस का स्वरूप देना चाहा, और उसने समाज के बीच में संदेश देना चाहा कि जिस किसी ने भी प्रेम किया है समाज से, वो हर एक व्यक्ति इस काम में उसका साथ दें और ऐसे कार्यक्रमों में हर सम्भव मदद करें जिससे उस व्यक्ति विशेष का मनोबल बढ़ सकें..!! जिसके ऊपर ऐसे कार्यक्रमों में पैसों व शारीरिक बल का भार आ जाता है..!! लेकिन ऐसी सोच पर काम करने वाले ऋषभ के जीवन में तूफान लाकर खड़ा कर दिया, उसकी खुशियों की तलाश की लाशों के ढ़ेर में एक ऐसा इंसान शामिल हो गया जो उसके जीवन का ही आधार था..!! जी हाँ---- ऋषभ की माँ ...

खुशियों की तलाश भाग 13

जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता है, तो आपके पास सिर्फ दो विकल्प होते है एक डॉक्टर और एक भगवान..!! डॉक्टर के पास जाने पर आपको अधिक पैसे खर्च करने पड़ते है और भगवान के पास जाने के लिए थोड़े कम पैसे लगते है..!! अब आप सोच रहे होंगे कि भगवान के पास जाने के लिए पैसे कहां लगते है..?? तो शायद आपने ध्यान न दिया होगा, मंदिर में प्रसाद भी उन्हीं को मिलता है जो या तो प्रसाद खरीदते है या तो चढ़ावा में न्यूनतम 5 रुपये/10 रुपये चढ़ाते है..!! तो ऋषभ को कैसे मिल जाता..?? जी हाँ ऋषभ जब नोटबन्दी से बिखरा हुआ सामान समेट रहा था तब उसको उसके जीवनसंगिनी आशा के साथ जीवन जीने में असफलता हाथ लगी थी, जिसे आपने पिछले भाग में पढा था..उसी वक़्त उसको तलाश थी ऐसे डॉक्टर या भगवान की जो उसके दर्द को कम कर देता..!! डॉक्टर के पास जाने से ऋषभ घबराया करता था क्योंकि बचपन से वो डॉक्टर के पास जाते जाते समझ चुका था कि उसका पूर्णतया इलाज़ हो पाना सम्भव नहीं..!! और कई बार उसे भगवान के द्वारा राहत भी मिल चुकी थी तो उसे विश्वास हो चला था कि सबका मालिक एक है..!! इसीलिये उसने भगवान का रास्ता अख़्तियार किया..!! भगवान के मिलने की भी राह आसान न...

खुशियों की तलाश भाग 12

जिनसे हम प्यार करते है वो सब तो आज भी सही है मेरी नजर में...!! बस एक मैं ही नहीं सही..!! ये पढ़कर आपको ख़ुद का एहसास हो गया होगा...और नहीं हुआ है तो आगे आने वाली जिंदगी में हो जाएगा..!! ये #खुशियों_की_तलाश का #भाग 12 है...वही भाग 12 जो आपकी जिंदगी में हुआ होगा या होगा...!! मैं आपकी कक्षा 12 के दौर की बात कर रहा हूँ...जिस वक्त आपके जीवन में कई राहों ने चौराहा बनाने का प्रयास किया होगा..!! एक तरफ मित्र होगा, एक तरफ जीवनसंगिनी, एक तरफ पढ़ाई और एक तरफ़ आपका परिवार..!! और इन्हीं सबसे मिलकर आपने अपना समाज बनाया होगा...और यही समाज ऋषभ का भी था..!! ऋषभ के जीवन में मित्रों, जीवनसंगिनी व पढ़ाई की स्थिति आपने पिछले भागों में पढ़ी है..!! और ये भी आपके समझ में आ गया होगा कि ऋषभ जिन खुशियों की तलाश में भटक रहा था वो पूरी नहीं हो पाई है..!! ऋषभ भटकता जा रहा था, लेकिन प्रयास करना उसका बन्द नहीं हुआ था..!! उसे आज भी पूरी आशा है कि उसकी खुशियों की तलाश जरूर पूरी होगी..!! और आपकी खुशियों की तलाश भी..!! ऋषभ के कक्षा 12 के समय का दौर है..!! पढ़ाई में अव्वल ऋषभ अपने मित्रों व जीवनसंगिनी को समय दिया करता था और साथ ...

राष्ट्रहित में विवेचना

पूर्व इतिहास में धार्मिक आधार पर राष्ट्र की मांग से भी नहीं सुधरे है लोग...अब लगने लगा है कि दलिस्तान, खालिस्तान, हिंदुस्तान और एक नया पाकिस्तान बनवाकर ही मानेंगे..!! #1906 #मुस्लिमलीग #1915 #हिन्दू_महासभा #1940 #खालिस्तान_किताब #2006 #दलिस्तान_वेबसाइट ये चार प्रमुख बिंदु है हैश टैग में जिसे आप गूगल के माध्यम से खोज सकते है और समझ भी सकते है कि अपना देश भारत कैसे गुलामी की ओर फिर से बढ़ता जा रहा है..!! सत्यता तो ये है धार्मिक उन्माद से भी खतरनाक है जातीय उन्माद..!! भारत की राजनीतिक दृष्टिकोण से..!! राजनीति का मतलब ही होता है राज करना, उसके लिए आपको ग़ुलाम बनाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा..!! धर्म, जाति, सम्प्रदाय, रंग, लिंग भेद के नाम पर बांटना इतिहास में उल्लेखनीय है उसके बाद भी आपकी आंखों पर पट्टी बंधी है, और आप ये साबित करने के लिए कि आपका वाला धर्म या आपकी वाली जाति ने ही सत्कर्म किये बाकी सब का विरोध करना सही है तो यही राजनीति का विषय ही है..!! और इसे ही राजनीति कहते है..!! और आप करिये..!! करिये क्योंकि गुलाम तो आप है ही, अपनी तुच्छ मानसिकता के..!! और हां हमसे जरा दूर...

खुशियों की तलाश भाग 11

राजनीति बहुत प्रभावशाली होती है आपकी जिंदगी में..!! हर किसी को यह कहना बहुत आसान होता है कि हमें बिल्कुल नहीं पसन्द राजनीति...लेकिन वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति कर रहा होता है या राजनीति का शिकार हो रहा होता है..!! जी हाँ ऋषभ की जिंदगी को भी राजनीति ने काफ़ी प्रभावित किया है..!! और आपकी अच्छी खासी जिंदगी को नरक बनाने में भी राजनीति का प्रभाव आपको देखने को मिल जाएगा..!! अब आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे सम्भव हो सकता है..?? आपको तो नेतागिरी से मतलब ही नहीं, तब कैसे राजनीति आपको या ऋषभ को प्रभावित कर रही..तो थोड़ा इत्मीनान रखिये, आज के इस भाग 11 में आपको आपकी जिंदगी में राजनीति का प्रभाव दिखाई पड़ने लगेगा..!! #खुशियों_की_तलाश #राजनीतिक_प्रभाव  ऋषभ मासूमियत और संस्कार से परिपूर्ण अपनी जिंदगी को जीने की जदोजहद में था...ऋषभ कक्षा 6 में अपने स्कूल का मेरिट में रहने वाला छात्र जब मित्रों की श्रृंखला का निर्माण कर रहा था, तब उसकी घनिष्ठ महिला मित्र पूजा और उसके घनिष्ठ पुरुष मित्र कौशल से उसका रोज का मिलना होता था..!! शिक्षा हो या खेलकूद हर चीज़ में अव्वल ऋषभ अपने आप को सम्पूर्ण करने ...

खुशियों की तलाश भाग 10

 जासूस तो हर इंसान में छुपा होता है बस उस जासूस के जन्म की वजह उसके जीवन में आने वाला तनाव होता है..!! जी हां ऋषभ के अंतर्मन में भी एक जासूस छुपा बैठा था, उसने अपने बचपन में जासूसी की कहानियों को शायद देखा था, जैसे हम और आप ने व्योमकेश बक्शी या शेरलॉक होम्स को पढा है..!! ऋषभ के मन का जासूस तब बाहर आया जब उसे पता चला कि उसकी पंडिताइन ने उसे बताया कि एक लड़का उसे तंग किया करता है...फिर क्या था ऋषभ ने उस लड़के के जांच पड़ताल के लिए अपने नेटवर्क को लगाया ठीक वैसे ही जैसे आप अपने दोस्तों से अपनी वाली के घर का पता लगवाते हो, लेकिन ऋषभ को तो अपनी वाली के घर का पता खुद लगा लिया था अब बारी थी तो उसको तंग करने वाले का पता लगाना..!! ऋषभ रोज पंडिताइन को कोचिंग से घर छोड़ने जाया करता था...और उसी वक़्त पंडिताइन की उंगली एक शख्स की तरफ़ उठी...यह वही लड़का था जो तंग किया करता था...लेकिन आज उसने तो कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी..!! और जब कोई प्रतिक्रिया न हो तो ऋषभ ने भी एक अच्छे वैज्ञानिक की तरह क्रिया प्रतिक्रिया के नियम का पालन किया..!! ऋषभ ने अपने मित्र जो कि पंडिताइन के घर के पास रहा करता था उसको काम पर...

खुशियों की तलाश भाग 9

जिंदगी में रिश्ते बनाना बहुत आसान है, उसे निभाना बहुत मुश्किल..!! जी हाँ ऋषभ की मां ने ये बात ऋषभ को अपने जीते जी सिखाई थी..!! लेकिन रिश्ते किसी एक के चाहने से तो बेहतर हो नहीं सकते..इस बात की पुष्टि उनके जीवन ने ही कर दी थी..!! ऋषभ की माँ ने अपनी ननदो, अपने देवरों, अपनी बहनों, अपने भाइयों, अपने बेटों, अपने पति सभी के रिश्ते को निभाने में शत प्रतिशत ईमानदारी दिखाई थी, लेकिन एक आध रिश्तों को छोड़कर बाकी सबने अज्ञानता वश या कह लीजिए व्यस्तता वश या खुलकर कह दूं तो स्वार्थ वश, बेईमानी ही की..!! आपके साथ भी होता होगा जब आप किसी रिश्ते के प्रति 100% ईमानदार होते है तो आपको उम्मीद हो जाती होगी कि आपका रिश्तेदार भी आपके प्रति 100% ईमानदार हो..!! लेकिन प्राकृतिक रूप से यह संभावना बहुत कम ही होती है क्योंकि मानव मस्तिष्क में भार सभी लोग नहीं झेल सकते या यूं समझिये कि मस्तिष्क में सभी के लिए प्यार, सेवा सदभाव रख पाना सम्भव नहीं होता..!! और इसी के चलते आपकी उम्मीदों पर हर कोई खरा नहीं उतरता..!! यह बात ऋषभ की माँ ने अपने पूरे जीवनकाल के दौर में सीख ली थी और ऋषभ को सिखाया भी था कि विपत्ति के समय में ...

खुशियों की तलाश भाग 8

कुछ फैसलों को वक़्त पर छोड़ देना चाहिए...यह बात सुनने में सकारात्मक लगती है...लेकिन अगर वक़्त रहते फैसले न लिए जाए तो निश्चित तौर पर परिणाम मन मुताबिक़ नहीं आते..!! यह वक़्त इस बात पर विचार करने का है कि आख़िर ऋषभ के #खुशियों_की_तलाश कब पूरी होगी..?? वक़्त बदलते देर नहीं लगती, आपका भी बदला होगा..!! हर रोज कुछ नया हुआ होगा, हर साल नया हुआ होगा..!! लेकिन एक वाक्य आपने सुना होगा, नियति सब तय कर चुकी है, होगा वही जो पहले से तय है...तो भाई कहाँ लिखा है, अगर लिखा है तो पढ़ेगा कौन..?? और पढा किसी ने तो बताएगा कब..?? और मान लो बता भी दिया तो वो बदलेगा कैसे..?? ऐसे तमाम उलजुलूल सवाल हर किसी के मन में उठने स्वाभाविक है क्योंकि यह भी तो आप पर निर्भर करता है तो आख़िर ऋषभ पर निर्भर क्यों न करें..?? ऋषभ ने भी नियति को मान लिया था, उसने भी मान लिया था कि जो कुछ भी हो रहा उसकी जिंदगी वह नियति है, उसकी पढ़ाई के स्वप्न, उसकी समाज व देश सेवा की जिम्मेदारी सब अधूरे रह गए थे क्योंकि उसके जीवन में उसके स्वास्थ्य ने ऐसा मोड़ ले आ दिया था कि उसका सँभल पाना मुश्किल हो गया था..!! वो कहते है न कि भगवान को मानने वालों के लि...

खुशियों की तलाश भाग 7

ऋषभ मन लगाकर पढ़ाई करने लगा था क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि खेल से अब वह देशहित में कार्य नहीं कर सकता, उसने कम समय में ही स्वास्थ्य को ठीक कर लिया था और उसकी हिम्मत की मिसाल हमेशा उसकी माँ पड़ोसियों व अपने परिजनों को बताया करती थी..!! ऋषभ को बचपन में ही दो दरवाजों के बीच उंगलियों के ऊपर पड़ने वाले दबाव पर न रोते देखकर ही उसकी माँ ने एहसास कर लिया था कि जीवन में कोई भी दबाव ऋषभ को कमजोर नहीं कर सकेगा..!! और हुआ भी कुछ ऐसा ही, उम्र के 10वें भाग में ही उसने शरीर के उस अंग का ऑपरेशन बिना किसी डर के करवाया, जिस अंग में छुअन मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते है..!! इन सबसे निपटकर ऋषभ अब पढ़ने लगा था, उसी वक़्त उसके साथियों के रूप में उसे कुछ ऐसे दोस्त भी मिले, जिन्होंने ऋषभ का कभी मजाक नहीं बनाया..!!  ऋषभ के नाट्य रूपांतरण की कला को पहचानने वाले उसके गुरुजन भी उससे प्रभावित हुआ करते थे, ऋषभ को नृत्य, कला, गायन, लेखन इन सभी विद्याओं में कम उम्र में ही अद्भुत ज्ञान प्राप्त था..!! ऋषभ का एक नाट्य मंचन में 'दूल्हा बिकता है' की कहानी आज भी प्रासंगिक है..!! नाटक के नाम से आपको एहसास हो गया होगा ...

खुशियों की तलाश भाग 6

व्यक्ति विशेष कथाएं व कहानियां आपने बहुत सी पढ़ी होंगी पर इस कहानी में आपको अपना एहसास होता होगा, अगर नहीं होता तो अब हो जाएगा..!! जी हाँ ऋषभ भी आप जैसा ही है, उसके भी दो आंख, एक नाक, दो कान, एक मस्तिष्क और एक शरीर है..!! बस अंतर इतना सा है कि वो खुशियों की तलाश में आप जैसा भाग नहीं सकता, क्योंकि उसको शारीरिक रूप से एक कमजोरी जन्म के वक़्त से ही प्राप्त है, जिसे यदि ऋषभ के माँ पिता के द्वारा समय रहते जाँच लिया गया होता तो शायद ऋषभ #खुशियों_की_तलाश में भाग दौड़ कर लेता..!!  ऋषभ कमजोर सिर्फ शरीर से था, उसका मस्तिष्क उसके हिसाब से पूर्णतया स्वस्थ था, मेरे हिसाब से तो नहीं क्योंकि उसको कक्षा 9 में हुए प्यार की तुलना में तो कक्षा 6 में हुई दोस्ती ज्यादा याद रखनी चाहिए थी, क्योंकि कक्षा 6 में उसकी दोस्ती जब पूजा से हुई थी तो जलनखोरों की संख्या ज्यादा थी और उसे तो पता भी न था कि लोगों की लाइन लग रखी है उसकी दोस्ती को कमजोर करने के लिए, तभी न मैं कह रहा कि ऋषभ के पास दिमाग था ही नहीं..!! अब आप लोग कहोगे कि ऋषभ दिल से सोचता था, तो भाइयों दिल से कैसे सोचा जा सकता है...इसके बारे में कभी खुद दिमा...