खुशियों की तलाश भाग 14
मुझे समझना हर किसी के बस की बात नहीं..और जो समझ नहीं सका वो समझदार नहीं..!!
ऐसे विचारों को अपने मन में बैठाए हुए ऋषभ अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाने के लिए इवेंट मैनेजमेंट कंपनी और एनजीओ के बेहतरीन मिश्रण का प्लान बना चुका था..!!
उसके मन में सामाजिक सुधार करने की प्रेरणा जो कि उसकी माँ के द्वारा उसे मिलती थी, वो उसे एक नया रूप देना चाहता था जिससे समाज में विकास और एकरूपता व्याप्त हो जाएगी ऐसा उसका मानना था..!!
उसने शादी विवाह, जन्मदिन, मृत्यु संस्कार जैसे सभी इवेंट्स को सामाजिक प्रेम की अवधारणा से बिज़नेस का स्वरूप देना चाहा, और उसने समाज के बीच में संदेश देना चाहा कि जिस किसी ने भी प्रेम किया है समाज से, वो हर एक व्यक्ति इस काम में उसका साथ दें और ऐसे कार्यक्रमों में हर सम्भव मदद करें जिससे उस व्यक्ति विशेष का मनोबल बढ़ सकें..!! जिसके ऊपर ऐसे कार्यक्रमों में पैसों व शारीरिक बल का भार आ जाता है..!!
लेकिन ऐसी सोच पर काम करने वाले ऋषभ के जीवन में तूफान लाकर खड़ा कर दिया, उसकी खुशियों की तलाश की लाशों के ढ़ेर में एक ऐसा इंसान शामिल हो गया जो उसके जीवन का ही आधार था..!!
जी हाँ---- ऋषभ की माँ "सुमन"
सुमन के साथ भी बचपन से ही वही सब कुछ हुआ था जो ऋषभ के साथ हो रहा था...या यूं कहिए कि जैसे प्रकृति ने ही दोनों के जीवन में एक जैसा व्यवहार किया था..!!
सुमन के बचपन में ही उसके ऊपर से माँ का साया उठ जाना, और विवाह के बाद पारिवारिक शोषण जो कि हर किसी ने देखा व सुना है, उसके बाद बीमारियों का जो दौर शुरू हुआ उसने तो उसकी जान लेकर ही दम लिया..!!
बीपी, सुगर जैसी बीमारियां तो आम थी सुमन के लिए, अपने मित्रों से मिलने जाने पर एक सड़क दुर्घटना में उसकी कमर में चोट आ गयी थी, जिसके बाद चलना फिरना कम हो गया था, लेकिन घर के हर एक काम में वो वैसे ही थी जैसे वो बचपन में हुआ करती थी..!!
रिश्तेदारों के बच्चों की शादियों में ख़ुद को स्पेशल बना लेने वाली शख्सियत थी सुमन, उसके नृत्य, गायन और मेहनत के चर्चे तो पूरे उसके खानदान में हुआ करते थे, उसके सारे गुण ऋषभ के अंदर आपको देखने को मिल ही जायेंगे..!!
लेकिन बीमारी धीरे धीरे उसे जकड़ रही थी, डॉक्टर भी खोज नहीं पा रहे थे उस बीमारी का नाम व वजह..!!
एक बार जब ऋषभ की तबियत हद से ज्यादा खराब पड़ी थी, और उसे किडनी में स्टोन की बात कही गयी थी तब ऋषभ को बालाजी महाराज मंदिर ले जाया गया था, जहां पर ऋषभ की माँ के अंदर भी वही सब कुछ हुआ था, जो ऋषभ के साथ हुआ था..!!
और तब से ऋषभ और उसकी माँ के मन में उसकी बीमारी की वजह वो लोग बन चुके थे, जिसे बहुत से लोग भूत, बहुत से लोग आत्मा, और कुछ लोग नेगेटिव पावर का नाम देते है, कुछ बीमारी ही कहा करते है..!!
जिसको जो समझ आता हो लेकिन था बहुत भयावह, जिसकी वजह से सुमन की जिंदगी उसकी खूबसूरती सब कुछ धूमिल होती जा रही थी..!!
सुमन को कमर व पैरों से दिक्कत बढ़ते हुए उसके किडनी तक जा चुकी थी, धीरे धीरे वो जकड़ती जा रही थी, और इन सब बातों से अनजान उसका मध्यम परिवार डॉक्टरी इलाज व ईश्वरीय इलाज़ करता रहा..!!
सुमन को डर नहीं लगता था और यही वजह थी कि उसने वो सब कुछ किया जिसकी वजह से वो खुद को साबित करने में सफल हुई थी..!!
अगर आपको भी डर नहीं लगता है तो यकीन मानिए आप भी सफल होंगे..!!
लेकिन वो सफ़लता कब मिलेगी ये डर भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि सुमन की जिंदगी में सुमन ने भी ये डर नहीं रखा था और वो इसीलिये सफ़ल हो रही...और उसका सफल इतिहास मैं अपने द्वारा लिख रहा हूँ..!!
सुमन ने अपने दर्द को इतना ज्यादा एन्जॉय कर लिया था कि डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे और कह डाला था कि ऐसी स्थिति में लोग हिम्मत हारकर बिस्तर पर पड़ जाते है, आखिर सुमन के अंदर क्या है कि इतना कुछ होने पर भी वो चलायमान है..!!
सुमन को अभी अपने ऋषभ की जिंदगी को बेहतर होते देखना था, और वो ऋषभ के कार्यो से बहुत खुश हुआ करती थी क्योंकि ऋषभ ने भी उसके जैसे किसी भी असफ़लता पर हिम्मत नहीं हारी थी..!!
ऋषभ जब पीयूष के पिताजी की तेरहवीं से होकर लौटा था तो वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुका था..!! उसने स्वयं को क्वारंटाइन कर रखा था, और अपनी माँ को फोन करके बता दिया था कि वो जल्द ही ठीक होकर घर आ जायेगा..!!
ऋषभ की माँ ने प्रत्युत्तर में कहा था कि मेरी भी तबियत ठीक नहीं है, बुखार हो रहा तुम अपना ख्याल रखना..!!
ऋषभ पीड़ित तो था लेकिन मन में उसके उलझन सी होने लगी थी, उसने उस रात को तो किसी तरह बीता लिया...पर सुबह जब उठा तो उसे महसूस हुआ कि उसकी तबियत में थोड़ा सुधार है..तो उसने घर जाने का निर्णय ले लिया..!!
और घर पहुँचकर उसने देखा कि उसकी माँ को तेज बुखार है, और पंखा चल रहा..!!
उसने खूब डांट लगाई और फिर समझाया कि पंखा चलने बुखार उतरने में वक़्त लगेगा, जितना ज्यादा गर्मी का एहसास करोगी उतनी जल्द पसीना होगा, और बुखार उतर जाएगा..!!
उसकी डाँट में प्यार देखकर उसकी बात सुमन ने मान ली, और फिर कुछ ही घंटों में बुखार उतर गया..और ये बात उन्होंने ऋषभ के पापा को फोन करके बताई थी..कि ऋषभ घर आ गया है...असल में ऋषभ के पिता दूर जिले में कार्यरत है और वो सरकारी नौकरी के चलते चुनावी ड्यूटी में व्यस्त थे..!! और ऋषभ का बड़ा भाई दूसरे राज्य में जॉब करता था..!!
नवरात्रि, तीज, छठ जैसी पूजा पाठ पर महिलाओं का क्या ही कहना, सारी शक्ति एक तरफ उनकी आस्था एक तरफ..!!
ऋषभ की माँ भी उनमें से एक थी...उस दिन नवरात्रि का पहला दिन था, और ऋषभ की माँ ने भी व्रत रखा था...लेकिन पिता से झूठ कह दिया था कि वो व्रत पर नहीं है..!!
ऋषभ के अंदर एक डर समा गया था क्योंकि वो जो कुछ देख रहा था, वो उसके अंदर उसने देख लिया था...हां ऋषभ कोरोना संक्रमित था तो वो जानता था कि उसके लक्षण क्या थे...??
और उसने अपनी माँ की जांच करवाना चाहता था क्योंकि वो जानता था कि बिना जांच के कोई भी अस्पताल उनका इलाज नहीं करेगा..!!
और इस बात को हर वो व्यक्ति जानता होगा जिसने कोरोनाकाल में अपने परिजनों व ख़ुद के लिए किसी डॉक्टर को फोन किया होगा या अस्पताल गया होगा..!!
सुमन का पहला दिन नवरात्रि का बीत गया, बुखार उतर गया था लेकिन गले मे दिक्कत बढ़ रही थी, दूसरे दिन सुबह 6 बजे जब सुमन उठी तो उसको बाथरूम तक जाने में सांस फूलने की समस्या उठी और उसने ऋषभ के पापा को फोन करके इसकी जानकारी दी और उसके पिता ने दवाओं की जानकारी दी जिसे खोजने पर भी वो सुमन को नहीं मिली, समय बीत रहा था तो उसने ऋषभ को बताया, ऋषभ ने अपनी माँ को ढांढस बंधाया..!! और अपने मित्र पीयूष को फोन किया और उससे पूरी स्थिति बताई और गाड़ी लेकर आने को बोला, साथ मे उसने डॉक्टर मित्र को फोन किया और उसे भी ऑक्सिमीटर (ऑक्सीजन मापक यंत्र) लाने को बोला..!!
लेकिन समय ज्यादा खर्च न हो इसलिए पीयूष ने ऋषभ को सलाह दी ओला करके कोरोना की जांच करवाने के लिए अस्पताल जाने की..!! और वही पर वो स्वयं पहुँच रहा था..!!
ऋषभ एक समाजसेवी व्यक्ति था तो उसके लिए वो सभी काम आसान थे जो एक आम व्यक्ति के लिए मुश्किल हुआ करते है, जैसे अस्पताल में कोरोना जांच, रक्तदान, अस्पताल में बेड का मिलना, अच्छे डॉक्टरों का साथ होना..!!
ऋषभ अस्पताल पहुँच चुका था, और उसकी माँ को सांस लेने में तकलीफ थी, तो वो बेहाल थी...इसीलिये ऋषभ भी जल्दी से कोरोना जांच करवाना चाहता था जिससे उसकी माँ को अस्पताल ले जाया जा सके..!!
तब तक ऋषभ का डॉक्टर मित्र व पीयूष वहां पहुँच गये, और डॉक्टर ने ऑक्सिमीटर से जब श्वास माप ली तो वो धक रह गया...ऑक्सीजन लेवल मात्र 70% था..!!
यह देखकर उसने माँ को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी...और शहर के सभी प्राइवेट अस्पतालों में ऋषभ की जान पहचान होने के बाद भी बिना कोरोना की जांच न हो पाने की वजह से ऋषभ की एक और महिला डॉक्टर मित्र ने सलाह दी कि ज्यादा भागदौड़ से हालत और बिगड़ जाएगी, आप तुरन्त उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती कराओ, बाकी परेशान न हो सब ठीक हो जाएगा..!!
ऋषभ ने उन सबके निर्णय को सही मानकर माँ को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने लेकर पहुँचा जहां पर हर एक मिनट में 2 लोगों की मौत होते देखकर उसकी रूह कांप गयी थी..!
अभी तक उसने सिर्फ सुना था लोगो को मरना, लेकिन वो उसी अस्पताल जा पहुँचा था जहां सिर्फ चीख पुकार सुनाई दे रही थी..!!
ऋषभ ने माँ को ढांढस बंधाया और ऋषभ की मां ने ऋषभ को बोला कि तुम भी अपना इलाज करवा लो..!!
क्योंकि वो भी तो कोरोना संक्रमित था...लेकिन माँ के दर्द के आगे उसका कोरोना भी हार मान चुका था..!!
ऑक्सीजन लग जाने के बाद ऋषभ की माँ को राहत मिल गयी थी, अब वो ठीक होने लगी थी, खुद ही पेशाब करने के लिए चले जाना और खुद चलकर वापस आना बिना किसी सहारे के, इससे ऋषभ और उसकी माँ का मनोबल बढ़ गया था कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा...क्योंकि उससे भी बड़ी बड़ी समस्याओं से लड़कर दोनों लोगों में भरपूर ताकत का समावेश था..!!
ऋषभ की माँ का भर्ती होने का संदेश जब परिवार व समाज तक पहुँचा तो हर जगह हलचल मच गई, क्योंकि कोरोनाकाल के उस दौर के जो अस्पताल जा रहा था, वो वापस नहीं लौट रहा था...इसलिए हर किसी ने ऋषभ को डांट फटकार भी लगाई..!!
लेकिन ऋषभ के साथ खड़े हुए हर एक शख्स ने व ऋषभ की माँ ने स्वयं कहा कि
"तुम परेशान न हो ऋषभ, जिसके ऊपर बीतती है बस वही समझ सकता है...हर किसी के बस की बात नहीं तुम्हे समझना, और जो तुम्हे नहीं समझ सकता वो समझदार नहीं..बकने दो जिसको जो बकना है, अभी मैं जिंदा हूँ..!!"
ऋषभ की जिंदगी में कुछ महीने पहले आये एक सदस्य सौरभ ने ऋषभ की माँ के साथ उस वक़्त वैसे ही बिताए थे जैसे ऋषभ ने पूरी जिंदगी बिताए थे..!!
जब ऋषभ दवाएं या सामान लेने जाता था, तो सौरभ उसकी माँ के पास रहता था, और तभी ऋषभ की माँ ने सौरभ से कहा था कि भैया के साथ रहना, वो अकेला है इस वक़्त, वो दवा भी नहीं खाया है और खाना भी, उसे खिला देना क्योंकि वो भी बीमार है..!!
माँ का प्रेम हर किसी के लिए रुदन का कारण बन जाता है...आज मेरी कलम भी रोती है जब भी कभी मैं ये याद करता हूँ कि ऋषभ की माँ बिस्तर पर थी और उसके बाद भी उसे खुद की नहीं अपने बेटे की परवाह थी, उसे अपने पति की परवाह थी, परिवार की परवाह थी और उस लड़के की भी परवाह थी जो उसके साथ था..!!
सब कुछ ठीक हो रहा था लेकिन शाम के 8 बजे अस्पताल से आये एक फोन ने थोड़ा सा मायूस कर दिया था ऋषभ को..!!
फोन पर उस ओर से बताया गया- सुमन कोरोना पॉजिटिव है..!!
यह सुनकर मानो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो क्योंकि ऋषभ ने सुना था कि कोरोना सुगर व बीपी के रोगियों को बहुत नुकसान पहुँचा देता है..!!
ऋषभ ने हिम्मत करके खुद को ऐसा बनाया की कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं, अस्पताल पहुँचकर उसने माँ से कहा कि मां ये इमरजेंसी वार्ड है अब इसमें से शिफ्ट करेंगे..!!
तो ऋषभ की माँ ने स्ट्रेचर पर करवट ले ली और ऋषभ पीयूष सौरभ ने उस स्ट्रेचर को दूसरे वार्ड में ले गए...जहां के लिए अस्पताल ने रेफर किया था...लेकिन वहां पर वार्ड बॉय ने बताया कि यहां ऑक्सीजन बेड नहीं है आप दूसरे वार्ड में पता कर लीजिए..!!
ऋषभ ने ऑक्सीमीटर से सुमन की जांच की तो ऑक्सीजन लेवल 80% था...ऋषभ ने दुसरे वार्ड में जाकर पता किया तो वहां भी बेड नहीं था..!!
वो दूसरे वार्ड में जा ही रहा था कि आवाज आई, भैया जी..!!
ऋषभ पलटा तो उसने देखा उसका एक पुराना मुस्लिम मित्र इरफ़ान था... जो उम्र और कद में तो उससे बहुत छोटा था, लेकिन उसके कार्यो से ऋषभ काफी प्रभावित रहता था..!!
इरफान ने पुछा कि क्या हुआ भैया..? यहां कैसे..?? आदेश कीजिये..!!
असल में इरफान उस वार्ड का हेड बॉय था..!!
तो ऋषभ ने बताया कि उसकी माँ की तबियत खराब हो गयी थी अचानक उसे ऑक्सीजन बेड की आवश्यकता है..!!
उसने कहा परेशान न होइए, पहले चलिये मां के पास..!!
वो साथ गया और मां को अपने वार्ड में लाकर स्ट्रेचर पर ही ऑक्सीजन दी..!! और माँ को ढांढस बंधाया कि सब ठीक हो जाएगा, आराम कीजिये इसीपर हम लोग बेड की व्यवस्था करते है..!!
फिर ऋषभ और इरफान ने मिलकर हर वार्ड में बेड की जानकारी ले डाली, सरकारी अस्पताल में सिर्फ एक वही अस्पताल था जिसमें कोरोना संक्रमण का इलाज हो सकता था...तो संख्या अधिक थी मरीजों की,बेड कम थे..!
फिर भी सामाजिक व्यक्तित्व के चलते ऋषभ की माँ को बेड मिल गया, और दवाओं की शुरुवात भी हो गयी..!!
लेकिन ऋषभ के चाचा के वहाँ पहुँचने पर सुमन ने पास आने के लिये मना कर दिया था..!! यह सुनकर ऋषभ व उसके चाचा अचंभित थे क्योंकि अभी तक तो उन्होंने किसी को पास आने से नहीं रोका था तो अब क्यों..??
असल में सुमन पढ़ी लिखी थी उसने भी दुनियादारी देखी थी, हर भाग दौड़ में वो ऋषभ के चेहरे को पढ़ पाने में सक्षम थी, कोरोना संक्रमित वार्ड में भर्ती होना उसको ये एहसास दिला चुका था कि वो संक्रमित है..!!
लेकिन ऋषभ पहले से संक्रमित था और उसने अपनी मां को ये कहकर बहला लिया था कि जो संक्रमित लोग होते है वो एक साथ रहते है और वो दोनो ठीक हो जाते है एक दूसरे से बोलते बात करने से जल्दी ठीक हो जाते है..!!
इसीलिये वो माँ के नजदीक था बाकी सब अब बाहर रहने लगे थे, वार्ड में प्रवेश हर किसी का वर्जित था..!!
अब आगे...अगले भाग में अंतिम रुप पढियेगा..!!
© Nikhil S Yuva
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