खुशियों की तलाश भाग 12

जिनसे हम प्यार करते है वो सब तो आज भी सही है मेरी नजर में...!!
बस एक मैं ही नहीं सही..!!

ये पढ़कर आपको ख़ुद का एहसास हो गया होगा...और नहीं हुआ है तो आगे आने वाली जिंदगी में हो जाएगा..!!

ये #खुशियों_की_तलाश का #भाग 12 है...वही भाग 12 जो आपकी जिंदगी में हुआ होगा या होगा...!!

मैं आपकी कक्षा 12 के दौर की बात कर रहा हूँ...जिस वक्त आपके जीवन में कई राहों ने चौराहा बनाने का प्रयास किया होगा..!!

एक तरफ मित्र होगा, एक तरफ जीवनसंगिनी, एक तरफ पढ़ाई और एक तरफ़ आपका परिवार..!!

और इन्हीं सबसे मिलकर आपने अपना समाज बनाया होगा...और यही समाज ऋषभ का भी था..!!

ऋषभ के जीवन में मित्रों, जीवनसंगिनी व पढ़ाई की स्थिति आपने पिछले भागों में पढ़ी है..!! और ये भी आपके समझ में आ गया होगा कि ऋषभ जिन खुशियों की तलाश में भटक रहा था वो पूरी नहीं हो पाई है..!!

ऋषभ भटकता जा रहा था, लेकिन प्रयास करना उसका बन्द नहीं हुआ था..!! उसे आज भी पूरी आशा है कि उसकी खुशियों की तलाश जरूर पूरी होगी..!!

और आपकी खुशियों की तलाश भी..!!

ऋषभ के कक्षा 12 के समय का दौर है..!!

पढ़ाई में अव्वल ऋषभ अपने मित्रों व जीवनसंगिनी को समय दिया करता था और साथ ही साथ अपने परिवार के उम्मीदों पर भी खरा उतरने का पूरा प्रयास करता था..!!

माँ की उम्मीद थी- ऋषभ टॉप करेगा..!!

मित्र की उम्मीद थी- ऋषभ पार्टी देगा..!!

जीवनसंगिनी की उम्मीद थी- ऋषभ...?? इसको छोड़ देते है क्योंकि उसकी उम्मीद समझ पाना सबके बस की बात नहीं..!!

इस चौराहे पर खड़े ऋषभ की उम्मीद थी कि वो सभी की उम्मीदों पर खरा उतरेगा..!!

ऋषभ की उम्मीद पूरी हो गयी..उसने सभी की उम्मीदों को पूरा कर दिया..!!

लेकिन उसके मित्र अब उसके साथ नहीं, उसकी जीवनसंगिनी उसके साथ नहीं, उसके उम्मीद पूरा करने का फ़लसफ़ा बस इतना सा था कि उसने सिर्फ एक दौर जिया है और खुद को सफ़ल बनाने के इम्तिहान मे तो वो पास हो गया लेकिन उसके अपने लोग उसके साथ नहीं थे..!!

कक्षा 12 के बाद उसने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया..!! और उसकी पढ़ाई के दौरान हुए एक खेल ने उसके मन में एक बेहतरीन सोच पैदा कर दी..!!

वो खेल था...#TRUTHorDARE

शायद आप भी जानते है इस खेल के बारे...जिसमे मित्रों की टोली के बीच आप एक वस्तु को घुमाते है और एक गीत बजाते है जब गीत बन्द हो जाता है तो वो वस्तु जिसके भी पाले में आती है उसे truth या dare में एक चयन करना होता था..!! Truth के चयन पर सच बोलना पड़ता था पूछे गए सवाल का और dare में दिए गए task को पूरा करना होता था..!!

अक्सर ऐसे गेम में प्रेम भावना का दिखना लाज़मी होता है क्योंकि ये गेम उस वक़्त खेला जाता रहा है जब आपकी उम्र 16 से 22 के बीच होती है और इस उम्र में प्रेम उमड़ जाने की संभावनाएं किसी वैज्ञानिक की खोज जैसी होती है..!!

ऋषभ भी इस खेल का हिस्सा बन गया था, उसने अपने मित्रों के लिए अपने जीवन के सभी राज को सबके सामने बता दिया था और dare में तो वो कॉलेज के अंदर तालाब में दूसरों को कुदवा भी चुका था..!! और propose करना तो एक आम बात होती थी इस गेम में...जिसे करवाकर लोग एक दूसरे की टांग भी खींचा करते थे, कईयों की तो सेटिंग भी इसी खेल खेल में हो जाया करती थी..!!

 जी हां आपने मन की उत्सुकता मैं समझ सकता हूँ, ऋषभ की भी हो गयी थी, लेकिन पढ़ाई के समय तनाव के चलते प्रेम का विस्तार होना कम सम्भव हो पाता है, ऋषभ के तो बस की बात थी पढ़ाई और प्रेम को एक साथ कर पाने की, लेकिन सबके बस की बात नहीं होती तो वो कहानी सिर्फ एक लेख तक ही सीमित रह गयी थी..!!

उसे मैं अगले भाग में बता दूंगा आपको..क्योंकि उससे ऋषभ का सिर्फ कटा था अरे वही जो आपका कटता जा रहा है..!!

लेकिन इस खेल में हो रहे सभी क्रियाकलापों पर उसकी प्रतिक्रिया उसके दिल से हुआ करती थी जिसकी वजह से उसके इर्द गिर्द मित्रों की टोलियां बहुत हुआ करती थी..!!

लेकिन आख़िर वो वजह क्या होती होगी जो ऋषभ से उसके लोग छूट जाया करते है...!!

ऋषभ ने तो कभी किसी की उम्मीदों पर पानी नहीं फेरा, तब भी लोग उसके आज उसके साथ नहीं..!!

जिनसे हम प्यार करते है वो सब तो आज भी सही है मेरी नजर में...!!

बस एक मैं ही नहीं सही..ऋषभ के मन में ये बात बार बार आ जाया करती है..!!

अब आपके मन का जवाब मैं जानता हूँ, आप कहेंगे कि वक़्त है जो लोगों का साथ छुड़वा देता है..!!

लेकिन ऋषभ इस जवाब से सहमत नहीं होगा..!!

ऋषभ ने तो पूरा वक़्त दिया था अपने लोगों को..!!

असलियत में ऋषभ ने अपने मस्तिष्क में वो सभी भाव भर रखे थे जो आपके मन में भी दूसरों के प्रति उमड़ते है..!! जिसके चलते ऋषभ या आपको भारी दुःखों का सामना करना पड़ता है...और जो लोग आपसे दूर हो जाया करते है उनको उन भावों के विषय में तनिक भी पता नही होता है...और यही वजह होती है दूरियों की..!!

ऋषभ की जिंदगी में बीते हर एक पल को आप महसूस करते होंगे और पाते होंगे कि ये तो आपके साथ भी हो चुका है...और ये सिर्फ इसलिए हुआ है क्योंकि आपका वक़्त खराब चल रहा या आपकी किस्मत में ऐसा लिखा है..!! तो ऐसा मात्र एक सामान्य सामाजिक सोच है जिसे आपने किसी व्यक्ति के मुख से या तो सुन रखा है या तो कहीं पढ़ रखा है..!!

आपका वक़्त आपके मस्तिष्क के भाव के अनुरूप चलता है...आप जो कुछ भी देखते, सुनते या महसूस करते है अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से, उसी के अनुरूप कार्य करने लगते है और यह सब आपको बताकर मेरा आपको पकाने का मन बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि ऐसी बातों से आप पक रहे है ये एहसास भी मुझे हो रहा है...लेकिन सच यही है..!!

खैर ऋषभ इन सब बातों से अनभिज्ञ अपनी जिंदगी की रेस में काफ़ी पीछे हो चला था...उसे अब तक भारतीय सेना में होना था लेकिन स्वास्थ्य के चलते वो सम्भव न हो सका...ऋषभ को अपने दूसरे प्रयास डॉक्टर बनने में भी असफ़लता प्राप्त हुई थी उसी स्वास्थ्य के चलते, उसका तीसरा प्रयास खुशियों की तलाश अभी जारी है..!!

लेकिन इन सभी प्रयासों में ऋषभ के जीवन में सिर्फ एक ही समस्या बार बार ऋषभ को असफल कर दे रही थी वो था उसका स्वास्थ्य..!!

और इस बार ऋषभ ने उस समस्या का हल खोज निकाला..!!

जी हाँ ऋषभ ने पढ़ाई व प्रेम के दौरान अपने मस्तिष्क का भरपूर उपयोग करना सीख लिया था...उसकी उलझनों से निकलने का रास्ता खोजते खोजते उसको जो चीज़ हाथ लगी वो कमाल थी...वो थी उसके मस्तिष्क पर उसका खुद का कंट्रोल..!!

ऋषभ ने जान लिया था कि उसका स्वास्थ्य आजीवन उसके साथ ही रहेगा, और उसका बिगड़ना या न बिगड़ना उसके मस्तिष्क पर ही निर्भर करता है...और उसने अपने मस्तिष्क में यह बात बैठा ली थी कि अब चाहे कितनी भी तकलीफ हो जाये वो बिल्कुल भी डॉक्टर या भगवान जैसी किसी भी बात में विश्वास नहीं रखेगा..!! और खुद ही अपनी हर बीमारी का इलाज खोज लेगा..!!

और आप यकीन नहीं मानेंगे, ऋषभ ने स्वयं को अपनी कई बीमारियों से आज़ाद कर लिया था स्वयं के मस्तिष्क पर कंट्रोल करके..!!

ऋषभ ने ठान लिया था कि दर्द होने का एहसास वो अब खुद को होने ही नहीं देगा, और उसे अब दर्द उसके मस्तिष्क तक तो पहुँचता था लेकिन वो उसे महसूस करना ही बन्द कर दिया था, वो गाने सुनने लगा था, किताबे पढ़ने लगा था, या यह कह लीजिये कि स्वयं को पढ़ने लगा था..!!

सब कुछ अच्छा होने लगा था, ऋषभ ने अपनी माँ के सिखाये हुए रास्तों पर चलने का मन बना लिया था...!!

ऋषभ की मां के साथ बीते हर किस्से को उसने अपनी आंखों से देखा था और महसूस किया था, उसके दर्द को समझना उसके लिए अब आसान होने लगा था इसीलिए उसने समाज को सुधारने का मन बना लिया था..!!

ऋषभ ने स्वयं की एक एनजीओ का प्रारंभ किया जिसमें उसने माँ की जिंदगी से सीखकर लोगों की मदद करनी शुरू कर दी...हर उस मुद्दे पर वो समाज को सिखाने का प्रयास करने लगा जिसमें समाज पिछड़ा हुआ था, जैसे बहुओं के साथ दुर्व्यवहार, पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार, पुरुषों की मानसिक अवस्था पर शोध...राजनीतिक प्रभाव आम जिंदगी पर, मस्तिष्क की वजह से ही उठ रही सभी तरह की समस्याओं के हल की खोज..!!

और ऐसा करते करते उसने ख़ुद को और दूसरों को भी खुशियां प्रदान करने का एक अच्छा साधन खोज लिया था..!!

ऋषभ डॉक्टर तो नहीं बन पाया था लेकिन ऋषभ ने समाज का डॉक्टर बनने का जो प्रयास शुरू किया था उससे उसे लगने लगा था कि ये एक अमिट प्रयास है जिससे उसकी माँ के सपने पूरे हो जाएंगे..!!

उसने अब तक के जीवन में जो दर्द सहे थे उसी दर्द से कमजोर न होकर उसको अपनी ताक़त बनाने का एक अच्छा प्रयास उसने शुरू कर दिया था..!!

लेकिन एक आंधी ने उसके उस सपने को उड़ा दिया..!!

अब आगे...खुशियों की तलाश में लाश..!!


© Nikhil S Yuva 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजनीतिक भ्रम

जगत प्रेम

जीवन जीने की आस