खुशियों की तलाश भाग 16

 

ऋषभ सबकी माँ को अपनी माँ मानता था..!!
प्रेम की इंतिहान देखिये उसकी...!!
और आज उसकी माँ नहीं थी..!!
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ऋषभ की माँ के आकस्मिक निधन के पश्चात ऋषभ अकेला पड़ गया था, अब उसको खाना खिलाने वाले हाथ भी न थे, और न ही हाथ बांधकर मारने वाले हाथ..!!

ऋषभ के पिता भी पोस्टमार्टम हाउस पहुँचे तो जो उनका साथ छोड़कर गयी उनकी पत्नी थी , उन्होंने अपने प्रेमी को देखा था, वो अब उनकी दुनिया मे नहीं थी..!! लेकिन दूसरा प्रेम उनका बेटा भी था, वो चाहते तो अपना गम अपने बेटे के साथ बांट सकते थे लेकिन उन्होंने अपना दुःख नहीं बांटा..!!

ऋषभ उनके दुःख को समझ सकता था, पर ऋषभ के दुःख को समझने वाला कोई नहीं था...ऋषभ के सिर से साया उठ गया था माँ की ममता के आँचल का..!!

भाई रात में लौटा, उसने भी आते ही सबसे पहले माँ की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू कर दी...बीमार तो थे वो भी, पर पहले जिम्मेदारी उसके बाद शरीर देखता था वो..!!

उसने भी जिम्मेदारी पूर्वक सारे काम काज में लग गया, जैसे ऋषभ की दवाईयाँ लाना, अपनी पत्नी के लिए दवाएँ लाना, मां की तेरहवीं के लिए संसाधन जुटाना क्योंकि ऋषभ को कोरोना संक्रमण था और उसके कुछ लक्षण उसकी भाभी में भी थे..!!

और उस वक़्त किस्मत अच्छी थी कि उनकी पत्नी के पास छात्रवृत्ति के पैसे शेष थे, ऋषभ के पास जो पैसे शेष थे वो उसकी माँ के इलाज़ में खर्च हो गए थे..!!

पिता के एकाउंट में पैसे नहीं थे, क्योंकि सैलरी नहीं आयी थी..!! उनके जीवन में कमाये हुए सभी पैसे जरूरतों को पूरे करने में खर्च हो जाया करते थे...क्योंकि उनका सपना था बच्चों के सपनों को पूरा करना..!!

अपने परिवार को यूं टूटते देख ऋषभ की मस्तिष्क में ऊर्जा गई या कह लीजिए दिमाग की बत्ती जल गई..!!

ऋषभ बिस्तर से उठ गया चंद दिनों में ही क्योंकि उसने देखा कि परिस्थितियों ने सबको बीमार बना दिया है...अगर अब वो नहीं जागा तो बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी..!

उसने अपने मन के दुःख को सुख में बदलने की ताकत को पहचान लिया..और उस ताकत से सबको एकजुट करने की भावना लिए सबसे बातें करना शुरू कर दिया...क्योंकि एहसास था कि प्रेम में वो ताकत है कि आप किसी को भी अपना बना सकते है...और अपना पूरा जीवन सुखमय बना सकते है क्योंकि सुकून ही जरूरत है..!! पैसो से भी अंततः मिलता सुकून ही है..!! और ये जीवन सुकून से जीने के लिए मिला है तनाव लेकर जीने के लिए नहीं..!!

उसने कुछ ही दिनों में पूरे परिवार और समाज के ऊपर एक अमिट छाप छोड़ी..!!

माँ के अंत्येष्टि यात्रा में सभी को आने के लिए मना कर दिया सिर्फ इसलिए क्योंकि वो नहीं चाहता था कि किसी अन्य को कोरोना का संक्रमण फैले..!!

लेकिन उसकी चाह सिर्फ इतनी थी कि उसकी मां की तेरहवीं पर वो लोग इकठ्ठा हो जाये जिसने मां के हाथ का खाना खाया हो...क्योंकि मां के हाथ का खाना और दुलार ही इस दुनिया का सबसे बड़ा प्रेम है..!! और अंत में सभी को मां की तस्वीर को भोग लगाने का अवसर देना चाहता था..!! क्योंकि जीतें जी सभी ने मां के हाथ का खाना खाया था कभी खिलाया नहीं था...!!

लेकिन हुआ वो नहीं जो उसने सोचा था क्योंकि सभी उसी की तरह नहीं सोच सकते, वही लोग पहुँचे जो किसी न किसी वजह से मां के प्रेम में थे...वो सुमन के सगे देवर थे और उनके बच्चे..ननद...ऋषभ और उसके भाई के कुछ मित्र जिनके लिए ऋषभ अनंत प्रेम का विषय था..!!

ऋषभ ने इस बीच अपने समाजसेवी कार्यों को भी करना बंद नहीं किया, समाज को रक्तदान, ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड की व्यवस्था करवाना...चूंकि उसने अपने प्रेम से कई लोगों में प्रेम उत्पन्न कर दिया था और उसकी वजह से भी उसके मददगार थे, सामाजिक लोगों से उसका लगाव भी बढ़ गया था..!! पर पैसों की मदद भी वो अब नहीं कर पा रहा था..!! क्योंकि उसके सभी पैसे अब समाप्त हो चुके थे...बस चंद हजार रुपयों से उसके पास सीमित थे क्योंकि उसे पैसो से प्रेम नहीं था..उसका मानना था उसने जो कुछ कमाया है वो उसके समाज से कमाया है इसलिए वो उसे उसपर ही लुटायेगा, सिर्फ उतना ही रखेगा जिससे उसका तन ढक सकें और पेट भर सकें..!! लेकिन वो इसी वजह से बीमार भी पड़ रहा था क्योंकि वो अपने ऊपर खर्च करने से पहले समाज पर खर्च करने को ही उत्तम मान बैठा था..!!

सभी को समझ पाना न तो ऋषभ को आसान था और न तो सभी का ऋषभ को समझ पाना आसान था..!!

बस ऋषभ ने खुशियों की तलाश के लिए जिस प्रेम का सहारा लिया था उसी के सहारे वो सेवाभाव लिए आगे बढ़ता जा रहा था..!!

अब सब बीत चुका है...एक अध्याय पूरा हुआ था ऋषभ के जीवन का..!!

ऋषभ अब तक जीवन में अपने आधार की मूलभूत श्रृंखला अपनी माँ को खो चुका है और अपने रिश्तों को प्रेम रस में बांधने की अटूट कोशिश करते हुए आगे बढ़ रहा है..!!

ऋषभ के पास उसके चाहने वालों की कमी नहीं है लेकिन वो सभी चाहते भी अपने फायदे के लिए...ये बात ऋषभ को लगती थी...लेकिन उसके बाद ऋषभ सभी को प्रेम की अवधारणा पर चलने की सीख देते हुए आगे बढ़ रहा है..!!

अनुभव होते हुए भी अनुभवहीन होना..!!
आत्मसम्मान होते हुए भी आत्मसम्मान को दबाए रखना..!!
ताकतवर होते हुए भी किसी को न दबाना..!!

बस खुश रहिये क्योंकि खुशियों की तलाश तभी सम्भव है जब आप चाहेंगे... अगर आप तनाव खोजेंगे तो तनाव ही पाएंगे..!!

वो प्रेम की अवधारणा पर चलते जा रहा है...लोगों को जोड़ते जा रहा है, उनकी खुशियों की तलाश के लिए ही सही..!!

मस्तिष्क में ही मन है, मन में ही मस्तिष्क है..!!
जीवन नास्तिक भी है, जीवन आस्तिक भी है..!!

ऐसी अवधारणा पर खुद के सपनों में सबके सपनों को जोडकर ले चलने की अवधारणा उसको कहाँ तक ले कर गयी वो आपको उसके दूसरे अध्याय में मिलेगा..!!

आप सभी को मेरा प्रेम भरा प्रणाम..!!

इस उपन्यास के सभी भागों को पढ़कर ऋषभ की जिंदगी से प्रेम सीख लीजिये या ऋषभ की जिंदगी को महसूस कर गलती करना या गलतियों को सुधारना सीखिए..!!

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