खुशियों की तलाश भाग 8

कुछ फैसलों को वक़्त पर छोड़ देना चाहिए...यह बात सुनने में सकारात्मक लगती है...लेकिन अगर वक़्त रहते फैसले न लिए जाए तो निश्चित तौर पर परिणाम मन मुताबिक़ नहीं आते..!!

यह वक़्त इस बात पर विचार करने का है कि आख़िर ऋषभ के #खुशियों_की_तलाश कब पूरी होगी..??

वक़्त बदलते देर नहीं लगती, आपका भी बदला होगा..!!

हर रोज कुछ नया हुआ होगा, हर साल नया हुआ होगा..!!

लेकिन एक वाक्य आपने सुना होगा, नियति सब तय कर चुकी है, होगा वही जो पहले से तय है...तो भाई कहाँ लिखा है, अगर लिखा है तो पढ़ेगा कौन..?? और पढा किसी ने तो बताएगा कब..?? और मान लो बता भी दिया तो वो बदलेगा कैसे..?? ऐसे तमाम उलजुलूल सवाल हर किसी के मन में उठने स्वाभाविक है क्योंकि यह भी तो आप पर निर्भर करता है तो आख़िर ऋषभ पर निर्भर क्यों न करें..??

ऋषभ ने भी नियति को मान लिया था, उसने भी मान लिया था कि जो कुछ भी हो रहा उसकी जिंदगी वह नियति है, उसकी पढ़ाई के स्वप्न, उसकी समाज व देश सेवा की जिम्मेदारी सब अधूरे रह गए थे क्योंकि उसके जीवन में उसके स्वास्थ्य ने ऐसा मोड़ ले आ दिया था कि उसका सँभल पाना मुश्किल हो गया था..!!

वो कहते है न कि भगवान को मानने वालों के लिए भगवान या तो स्वयं आते है या किसी दूत हो भेजते है तो वो दूत बनकर या कह लीजिए स्वयं भगवान ऋषभ की जिंदगी में उनके रिश्तेदारों में एक भाई ने ली थी..!!

ऋषभ की मनोस्थिति का मूल्यांकन कर ऋषभ को संभालने की अवैतनिक जिम्मेदारी ऋषभ के रिश्तेदार बड़े भाई अनुतोष ने ली थी, वैसे ये रिश्तेदार शब्द सुनकर आपके मन में तो क्रोध उत्पन्न हो गया होगा क्योंकि मिर्च मसाला लगाने के अलावा रिश्तेदारों को और किसी कारण से नहीं जाना जाता, लेकिन यहां अनुतोष ने ऋषभ की जो मदद की उसे जानकर आपको भी लगेगा कि रिश्तेदारों से लगाव रखा जा सकता है..!!

अनुतोष ऋषभ से लगभग 10 वर्ष उम्र में बड़े थे तो ज़ाहिर सी बात है अनुभव में अधिक थे...लेकिन कई ऐसे लोगों से भी आप मिलें होंगे जिसकी उम्र आपसे बहुत अधिक होगी लेकिन वो आपको अनुभवी कम लगते होंगे तो यह सिर्फ आपको लगता है, ऐसा स्वाभाविक है, लेकिन वास्तविकता में जिसकी उम्र ज्यादा होती है वो अनुभवी ज्यादा होता है, चाहे वह किसी एक क्षेत्र में ही क्यों न हो..?? 

तो उसी तरह अनुतोष भी काफ़ी अनुभवी व्यक्ति थे उन्होंने ऋषभ की मनोदशा को क्षण भर में भाप लिया और ऋषभ के साथ वक़्त देने लगे, ऋषभ को भी एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जिससे वो अपनी मनोव्यथा कह सकता...!!

ऋषभ की हर सफ़लता के परिणाम से पूर्व ही हर बार असफ़लता के फलस्वरूप ऋषभ को समझना मुश्किल हो चला था..क्योंकि हर पड़ाव पर चाहे वो कैरियर की बात हो या उसके प्रेम की, वो हर जगह असफल हो रहा था...इस बात की तह तक पहुँच पाना तो असम्भव था लेकिन ऋषभ को खुशी के नए तरीके बताना अनुतोष से प्रारंभ किया..!!

उसी वक़्त ऋषभ की पढ़ाई जो कि नाम मात्र के लिए चल रही थी वो भी बन्द हो गयी क्योंकि ऋषभ के पिता एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे तो ऋषभ को महंगी पढ़ाई करा पाने का सपना भी ऋषभ के स्वास्थ्य के चलते अधूरा रह गया..!!

इसलिए ऋषभ का कानपुर से वापस बुलावा आ गया, उस वक़्त अनुतोष ने ऋषभ को काफ़ी अनुभव देकर भेजा क्योंकि अनुतोष एक IT इंजीनियर थे और उन्होंने ऋषभ को सीखा कर भेजा था कि यदि जीवन में कुछ हासिल न हो तो इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का रास्ता अपना लेना...!!

ऋषभ वापस अपने शहर इलाहाबाद आ पहुँचा, वही पुराने लोग, जो शायद परिहास उड़ाया करते थे, और क्यों न उड़ाए क्योंकि वो सफल थे और ऋषभ असफ़ल..!!

और यही समाज है कि हर सफल व्यक्ति असफ़ल व्यक्ति का परिहास करता है..!!

और इसी परिहास ने ऋषभ को मजबूत बना दिया, ऋषभ ने इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई शुरु कर दी...और अपने भाई अनुतोष के साथ अनुभव लेने लग गया...ऋषभ मस्तिष्क से तो बिल्कुल कमजोर न था जिसके चलते ऋषभ ने कम समय में काफी ज्ञान अर्जित कर लिया और ऋषभ ने एक कंपनी में जॉब भी शुरू कर दी..!!

इन सब वक़्त में ऋषभ के साथ जो रिश्ते चल रहे थे वो उसकी प्रेमिका, उसकी माँ, उसके पिता, उसके भाई, उसके दोस्त सभी उसके साथ थे..!!

क्योंकि जब वक़्त अच्छा चल रहा होता है तो सब साथ चल रहे होते है..!!

ऋषभ की जिंदगी में जो भी प्रेमिकाओं व दोस्तों ने प्रवेश किया था वो सब वक़्त की ही देन थी...इसीलिये ऋषभ ने भी वक़्त के साथ साथ खुद को संभालने का तरीका भी समझ लिया था..!!

ऋषभ अब खुश रहने लगा था, मतलब ऋषभ की खुशियों की तलाश अब पूरी हो रही थी..!!

लेकिन ऋषभ की बीमारी ने ऋषभ का साथ कहाँ छोड़ा था..??

ऋषभ के साथ तो वो अब भी था जिसका होना या न होना, दोनों किसी को नहीं महसूस होता था और न दिखाई देता था..!!

हमें पता है कि आपमें से कई लोग इस अदृश्य ताकत पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते लेकिन यदि आप भगवान पर विश्वास रखते है तो भूत पर भी रख लीजिए क्योंकि ये एक ऐसी ताकत है जो आपके इर्द गिर्द हमेशा रहा करती है..!!

ऋषभ बेफिक्र तरीके से खुद को मजबूत बनाने के लिए जब भी मेहनत करता उसके फलस्वरूप उसे निराशा हाथ लगती, इसकी वजह उसकी नियति थी या उसके अंदर की कोई कमी यह बात न तो हम जानते है और न ही कोई जान सकता था...लेकिन अनुभव के दौर में इतना तो आप भी जानते होंगे कि आप सफ़ल होते होते क्यों रह जाते है..?? 

ऋषभ की माँ भी इसी सवाल के खोज भी थी, कि मुझें जो पीड़ा मिली मेरे जीवन में, वो आखिर मेरे बच्चे को क्यों मिल रही है..??

ऋषभ की माँ ने कम उम्र में ही अपनी माँ को खो दिया था, परिवार द्वारा विवाह संपन्न तो कराया गया लेकिन परिवार ऐसा मिला जिसे आप रूढ़ि परिवार कह सकते है..बस एक बात अच्छी थी कि उनका जीवनसाथी मतलब ऋषभ के पिता एक अच्छे पति भी थे, उन्होंने कभी ऋषभ की मां को पीड़ा नहीं पहुँचायी..!!

ऋषभ की मां भी प्रेतात्मा से पीड़ित थी जिसके चलते उसे ऋषभ के हर दर्द का एहसास था...और वो चाहते हुए भी ऋषभ की कोई मदद नहीं कर पा रही थी..!!

बस एक मात्र सहारा उसके आराध्य बालाजी को छोड़कर वो कुछ और कर भी क्या सकती थी..??

आप स्वयं सोचिये कि आपके परिवार में ऐसी विपत्ति किसी पे आ पड़ी हो तो बेचारा कर भी क्या सकता है..??

ऋषभ की माँ भी दिलासा दे देकर ऋषभ को मजबूत करती रही कि सब कुछ ठीक हो जाएगा..!!

बुरे दिनों के बाद अच्छे दिन आते है...और वो अच्छे दिन आ भी गए नोटबन्दी के नाम से..!!

जी हाँ ऋषभ भी इसी दौर का था, ऋषभ के अच्छे दिनों में नोटबन्दी भी शामिल हुई थी..!! ऋषभ को जॉब करने में परेशानी होने लगी क्योंकि कस्टमर कम होने लगे थे, ऋषभ एक आईटी वर्कर था, ऋषभ के पास वही लोग आते थे जिनके पास पैसे हुआ करते थे, तो नोटबन्दी से लोग अब ऋषभ के पास आने बन्द हो गए तो ऋषभ के जॉब में भी नुकसान होने लगा..!!

और उसी नुकसान के चलते ऋषभ की रिश्तेदारियों में पैठ कम होने लगी क्योंकि जब जेब में पैसे न हो रिश्ते भी पैसो की तरह खनकना कम कर देते है..!!

ऋषभ कमजोर तो पड़ा लेकिन इतना भी नहीं कि बिखर जाए..!! ऋषभ ने तुरन्त खुद को मजबूत बनाने के लिए जॉब से व्यापार की ओर रुख किया और एक साथी के साथ मैन पावर सप्लाई बिज़नेस में एंट्री कर डाली..!!

लेकिन हाथ यहां भी कुछ न आया सिवाय धोखेबाजी के..!!

ऋषभ की जिंदगी में खुशियों की तलाश कब पूरी होगी..ये सोचकर ऋषभ भी परेशान था और हम आप तो हो रहे ही है..!!

खैर अब अगले भाग में जानिएगा कि ऋषभ के भूत का साथ ऋषभ से छूट गया या ऋषभ टूट गया.!!

© Nikhil S Yuva 

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