खुशियों की तलाश भाग 6

व्यक्ति विशेष कथाएं व कहानियां आपने बहुत सी पढ़ी होंगी पर इस कहानी में आपको अपना एहसास होता होगा, अगर नहीं होता तो अब हो जाएगा..!!

जी हाँ ऋषभ भी आप जैसा ही है, उसके भी दो आंख, एक नाक, दो कान, एक मस्तिष्क और एक शरीर है..!!

बस अंतर इतना सा है कि वो खुशियों की तलाश में आप जैसा भाग नहीं सकता, क्योंकि उसको शारीरिक रूप से एक कमजोरी जन्म के वक़्त से ही प्राप्त है, जिसे यदि ऋषभ के माँ पिता के द्वारा समय रहते जाँच लिया गया होता तो शायद ऋषभ #खुशियों_की_तलाश में भाग दौड़ कर लेता..!! 

ऋषभ कमजोर सिर्फ शरीर से था, उसका मस्तिष्क उसके हिसाब से पूर्णतया स्वस्थ था, मेरे हिसाब से तो नहीं क्योंकि उसको कक्षा 9 में हुए प्यार की तुलना में तो कक्षा 6 में हुई दोस्ती ज्यादा याद रखनी चाहिए थी, क्योंकि कक्षा 6 में उसकी दोस्ती जब पूजा से हुई थी तो जलनखोरों की संख्या ज्यादा थी और उसे तो पता भी न था कि लोगों की लाइन लग रखी है उसकी दोस्ती को कमजोर करने के लिए, तभी न मैं कह रहा कि ऋषभ के पास दिमाग था ही नहीं..!!

अब आप लोग कहोगे कि ऋषभ दिल से सोचता था, तो भाइयों दिल से कैसे सोचा जा सकता है...इसके बारे में कभी खुद दिमाग से सोचना..!!

खैर दोस्ती, मोहब्बत, इश्क़, प्यार, सबमें असफ़ल ऋषभ दिमाग न होने की वजह से कंफ्यूज रहने लगा था..इसीलिये तो उसने सोशल मीडिया का सहारा चुन लिया क्योंकि जब व्यक्ति सामने से कुछ न कह पाता तो उसे पहले के समय मे पत्र के माध्यम से और आज के माध्यम में स्टेटस के माध्यम से कह डालता है..!!

ऋषभ ने भी जोरों की आजमाइश की, और खुद दूसरों की खुशियों का जरिया बन गया..!!

अब आप सोच रहे होंगे कि कैसे..??

जिस ऋषभ को 14 वर्षो से खुशियों के जंगल मे भी वनवास व्यतीत करना पड़ा था, उसे आखिर इतने कम समय में खुशियों का राज सिंहासन कैसे मिल गया..??

तो उसके लिए आपको इत्मीनान रखना होगा क्योंकि अगर इतनी जल्दी ख़ुशी आपको मिल जाएगी तो खुशियों की तलाश का असली मतलब आपको समझ न आएगा..!!

जैसे बचपन में आपको जिद करके मिली थी चॉकलेट, गुब्बारे या मनपसंद ड्रेस, लेकिन वो ख़ुशी चंद क्षणिक थी..उन खुशियों के सामने जो आपने स्वयं के पैसो से खरीदी बाइक से मिली हो या घर से, या दूसरों की मदद से..!!

ऋषभ ने भी जब जन्म लिया था माँ की कोख से,

तो माँ को स्वाभाविक दर्द हुआ होगा, मैं माँ नहीं इसलिए शायद माँ का दर्द समझ पाना अंसभव है इसीलिए स्वाभाविक दर्द लिखा, आपमें से यदि कोई मां है तो निश्चित रूप से वो दर्द एहसास में होगा..!!

ऋषभ को पाकर माँ सुमन बहुत खुश थी, पर वो ख़ुशी उसके चेहरे पर दिख रही थी, अंदर से नहीं दिख रही क्योंकि उसके शरीर में दर्द था वो दर्द जो बच्चा पैदा करने के बाद भी ससुराल के द्वारा जाने अनजाने में दिया जाता रहा है। घर के काम-काजों के लिए शायद बहुओं को समाज ने व्यवस्थित अवैतनिक नौकर का दर्जा दिया है...क्योंकि बहुओं के आ जाने के बाद से बेटियों व बेटों को मालिक का दर्जा जो मिल जाता है..!! ये बेटियाँ भी जब किसी के घर बहू बनकर जाती है तो वो भी अवैतनिक नौकर ही बन जाती है...क्योंकि समाज ने महिलाओं को काम काजी अवॉर्ड से नवाजा है।

ये सिर्फ ऋषभ के घर ही नहीं, अपितु हर मध्यमवर्गीय घरों में देखने और महसूस करने को मिल जाएगा, अमीर वर्गों में इसलिए नहीं दिखेगा क्योंकि वहां वैतनिक नौकर रखे जाते है..!!

तो ऋषभ की माँ भी अवैतनिक नौकरों की तरह अपने दर्द को छुपाए खुशियों के चेहरे को प्रदर्शित करते हुए अपने बेटे की देखभाल में लग जाती है,,,वर्ष बीतते जातें है जैसे आपके बीते होंगे, खिलौनों,किताबों,कुटाने या मिटाने में..!!

ऋषभ जब 6 वर्ष का था, तो उसकी मौसी की बेटी ने कहा था कि ऋषभ पढ़ने में बहुत अच्छा है मौसी, ये जरूर आपका नाम रोशन करेगा, लेकिन ऋषभ को पढ़ने से अच्छा खेलना पसंद था, और इसीलिये वो पढ़ाई के बाद खेल में रुचि रखने लगा, ये सब देखकर उनकी बुआ जिनके बेटे जिम्नास्ट के बेहतरीन अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी थे, उन्होंने ऋषभ की माँ से ऋषभ को भी भर्ती करने की बात कही और फिर क्या था ऋषभ के तो खुशियों का ठिकाना न था क्योंकि ऋषभ को वो मिलने वाला था जो अतुलनीय था, जिमनास्टिक वह खेल है जिसमें आपकी शारीरिक ऊर्जा बढ़ती है साथ ही आप देश का नाम भी रोशन कर सकते है, ओलंपिक में इन खेलों में भारत में कई बार पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया है...ऋषभ भी देश की सेवा करने के लिए और खुद को साबित करने के लिए जिम्नास्ट बनने के लिए तैयार था..!!

ऋषभ ने करीब तीन वर्षों में ही कई अंतरराज्यीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किए, और उसी वक़्त उसके बुआ के बेटे ने ओलपिंक में भारत का नाम रोशन किया और भारतीय सेना में नौकरी पाई...ये सब देखकर उसकी ऊर्जा बढ़ती जा रही थी, क्योंकि आपको भी यदि ऐसे लोग मिल जाये जिनके पथ पर कांटे तो हो लेकिन वो बिना डरे आगे बढ़ते जाए तो आपके हौसले भी मजबूत हो ही जाते है..!! तो ऋषभ के भी हौसले बहुत मजबूत थे लेकिन मंजूर कुछ और था समय को..!!

एक रात ऋषभ के पेट में दर्द उठा, और ऋषभ बिस्तर से न उठ पाया, पिता के देखने पर पता चला कि पेट मे सूजन आ गयी है, आनन फानन में ऋषभ को लेकर उसके पिता अस्पताल भागे...ऋषभ के पिता के पास उस वक़्त साईकल हुआ करती थी जिसपर वो रोज रात 3 बजे ऋषभ को बैठाकर बीएचएस स्कूल,खेलगांव पब्लिक स्कूल, जिमनास्टिक अकेडमी छोड़ा करते थे..!! वो धन्नो हुआ करती थी ऋषभ के पापा की, उस धन्नो ने उस रात भी ऋषभ को अस्पताल तक सही सलामत एक अच्छी एम्बुलेंस बनकर पहुँचा दिया..!!

जांच में पता चला कि ऋषभ के अंडकोषों में सूजन आ गयी है और उनका ऑपरेशन करना होगा..!!

इन सबका कारण जानकर आपको हैरानी होगी कि एक छोटी सी लापरवाही की वजह से ये सब हुआ था, जी हां, ऋषभ के जन्म के वक़्त ऋषभ को किसी ने बेअंदाजी एक हाथ से उठा लिया था, जिसकी वजह से ऋषभ के जन्म के बाद ही उसका एक अंडकोष उसके पेट में चला गया था और शरीर की नस में खिंचाव की वजह से आंखों पर भी असर पड़ गया था...और जिमनास्टिक शारीरिक कसरत करने वाला खेल था जिसकी वजह से ऋषभ की शरीर तनाव झेल न सकी और प्रतिक्रिया स्वरूप सूजन आ गयी..!!

खैर ईश्वर का शुक्र था कि कोई दुःखद घटना नहीं घटी, ऋषभ का आपरेशन सफल हुआ लेकिन ऋषभ अब पूरी जिंदगी खेलकूद में भाग नहीं ले सकता था और न ही कोई कसरत कर सकता था, जैसे साईकल चलाना तक उसका प्रतिबंधित था..!!

एक माँ जिसने अपने बच्चे को जन्म दिया खुशियों के लिए, और उसके सामने ये सब घटित हो गया हो, उसपर क्या बीती होगी ये सब सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है..!!

अब ऋषभ की जिंदगी का पहला सपना ही अधूरा रह गया था, देश की सेवा तो दूर अब उसे खुद की सेवा की आवश्यकता आ पड़ी थी, और उस वक़्त ऋषभ की उम्र मात्र 10 वर्ष थी..!! इतने कम उम्र में ऋषभ पर तो इन सबका कोई असर नहीं पड़ रहा था लेकिन उसकी माँ को एहसास हो गया था कि ऋषभ की जिंदगी अंधेरे में डूब रही है...फिर भी उसने हिम्मत नहीं छोड़ी, मेहनत करके उसने सबसे महंगी पढ़ाई पढ़ाने का मन बना लिया..!!

असलियत में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए अपने आप को पाल लेना ही बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है ऐसे में महंगी पढ़ाई मतलब प्रोफेशनल पढ़ाई जैसे डॉक्टर, इंजीनियर में बहुत कम लोग ही हिम्मत कर पाते है...चूंकि ऋषभ पढ़ने में भी बहुत तेज था इसलिए उसकी माँ ने अपने सारे दर्द भूलकर मेहनत मजूरी करके ऋषभ को काबिल बनाने का संकल्प ले लिया..!!

ऋषभ की माँ ने तो अब घर की छत भी तैयार कर ली थी, इससे पहले वो किराए पर रहती थी क्योंकि बहुओं को प्रताड़ित कर घर से अलग करने की प्रथा बहुत पुराने वक़्त से चली आ रही है...,लेकिन वो हारी नहीं क्योंकि उनका पति ऋषभ के पापा भी किसी हीरो से कम नहीं, वो तो आपको तब्य ही समझ लेना चाहिये था जब ऋषभ के खेलने की बात हुई थी क्योंकि किसी के बाप खेलने नहीं देते थे, लेकिन ऋषभ को तो वो खुद ही छोड़ने जाया करते थे, तो हुए न हीरो, अगर आपके भी हो तो जाकर गले लग लीजिये एक कंटाप आशीर्वाद स्वरूप मिल जाएगा..!!

ये सब तो आपकी खुशियो के लिये था, 

लेकिन ईश्वर को शायद वो भी मंजूर नहीं था..!!

अब आगे...

© Nikhil S Yuva

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