खुशियों की तलाश भाग 5
वक़्त आता नहीं, वक़्त बनाना पड़ता है..!!
यह पढ़कर कितनी ऊर्जा मिलती है न,
बस ऊर्जा ही है बाकी कुछ नहीं..!!
ऋषभ सोच रहा कि जिंदगी में #खुशियों_की_तलाश शुरू की तो न जाने कितने दुःखों के पहाड़ टूट पड़े, जिनको दूर करना तो दूर भूला पाना भी मुश्किल हो चला..!!
पढ़ने की उम्र में प्यार की पहली दस्तक ने जीवन में पढ़ाई के अलावा और भी चाहतों के पन्नों को पढ़ने पर मजबूर कर दिया..!!
उसमें पंडिताइन ने साथ न दिया तो पढ़ाई भी मानो रूठ सी गयी, जिस गणित के विद्यार्थी को जीव विज्ञान में रुचि हो चली थी प्यार की वजह से, वो न तो डॉक्टर बन पाया और न ही गणितज्ञ बन पाया..!! इंटरमीडियट तो पास हो गया पर लव के इंटरवल के बाद उसकी हीरोइन बदल गयी, और उसकी तकदीर भी..!!
पहले दोस्ती और फिर प्यार के चक्कर में पड़ने वाला ऋषभ कोई पहला लड़का नहीं है इस दुनिया का, जिसे कम उम्र में यह सब हुआ, आपको भी हुआ था..!!
आपके साथ ये सब बिता हो न या न बीता हो पर हुआ जरूर था, और आपकी पढ़ाई में कम, इश्क़ में विश्वास ज्यादा था क्योंकि खुशियाँ ज्यादा से ज्यादा बटोरने का मन हर किसी को करता है..!!
ऋषभ ने भी अपनी जिंदगी में खुशियों को बटोरने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन आशा के दूर हो जाने के बाद ऋषभ अकेला तन्हा रहने लगा, उसने अपनी इस तन्हाई में नैना को खोजने की कोशिश की तो उसे पता चला कि उसकी सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी थी..!!
ये वही नैना थी जिसके चलते पंडिताइन ऋषभ को कभी न मिल पाई थी..!!
अब उसे गलत कहो या सही,
जो लिखा था नसीब में हुआ वही..!!
भाग 2 में नैना को आप सबने जान भी लिया होगा कि उसे ऋषभ से ज्यादा उसके दोस्तों पर विश्वास था, ऐसे में ऋषभ का तो कटना तय था..और कटा भी तो ऋषभ को उतना दुःख नहीं हुआ था जितना उसकी मौत का सुनकर हुआ था, क्योंकि नैना ही उसकी एकमात्र दोस्त थी जिससे उसे बहुत लगाव था, नैना से मिलकर वो सच बता न पाया उसे उस बात का दुःख था..!! उसकी पंडिताइन ने भी शादी कर ली थी..!!
और इस दुःख से बड़ा दुख था आशा से दूर होने का..!! और आशा की शादी का सुनकर वो सिसककर रह गया..!! और भूत प्रेत जैसे विवादों में भी घिर गया..!! इस विषय पर अगले भाग में लिखेंगे..!! अभी दुःख पर ध्यान दीजिए..!!
क्योंकि लड़कियों को हँसने और लड़कों को रोने नहीं देता ये समाज..!!
और आज के समय मे जो दुःखी होता है वही सबसे ज्यादा सुखी होता है, क्योंकि कंधा देने वाले बढ़ जाते है..!!
जी हाँ, सोचिए अपनी जिंदगी में, झांकिए, झांकिए..!!
मिला न वो किस्सा, जब आप रोये तो कितनों ने आपको कहा कि क्या हो गया, मत रोना, हम है न..!!
सही पकड़े है न, हां तो भाइयों बहनों आपका भी कटा था..!! अब ऋषभ का भी कटेगा..!!
ऋषभ को आशा के दुःख के चलते थोक के भाव में सुख मिलें, पर वो क्षणिक थे, किसी ने मेडिकल के नाम पर, किसी ने जॉब के नाम पर, किसी ने हम तुमसे प्यार करते है के नाम पर..सुख लेन देन किये..!!
पर उसमें से ही एक मिली ऐसी जिसकी जिंदगी ऋषभ जैसी ही खुशियों की तलाश में भटक रही थी..!! उसका नाम था आरती, वो भी धोखे खा- खाकर संभलने की कोशिश कर रही थी..!! ये वही परेशान लड़की थी जिसने आशा को फोन करके कहा था कि मैं ऋषभ के बच्चे की माँ बनने वाली हूँ..!!
अब जब कोई वैकल्पिक जीवन जी ही रहा हो तो कोई भी आये जाए घर किसी का हो...क्यों सही कहा न..??
ऋषभ ने भी आरती को संभालने का प्रयास किया और आरती ने भी ऋषभ को...दोनों ने कम समय में एक दूसरे को सम्भाल भी लिया, दोनों अच्छे दोस्तों की तरह जिंदगी में खुशियां बटोरने लगे..!!
बिज़नेस अच्छा चल रहा था ऋषभ का लेकिन नोटबन्दी ने ऋषभ को कमजोर कर दिया था, लेकिन आरती ऋषभ की मदद किया करती थी, और ऋषभ इतनी बार प्रयासरत हो चुका था खुशियो की तलाश में तो उसे अनुभव हो चला था कि किसी भी जिंदगी को चलाने के लिए क्या क्या आवश्यकता पड़ती है..??
और उसी अनुसार वो हर संभव तरीको से खुश रहने व खुश रखने का प्रयास करता रहता था...ऋषभ को बुरी आदतों की लत भी पड़ चुकी थी क्योंकि ग़मो को मिटाने के लिए इंसान को बुरा बनना पड़ता है, और हां ये कही किताब में लिखा नहीं है बस ऋषभ का अनुभव है..!!
ऋषभ दिन- प्रतिदिन बीमार पड़ जाया करता,
आरती उसकी मदद करती, फिर आरती भी बीमार पड़ा करती तो ऋषभ उसकी मदद किया करता..!!
ऋषभ आरती एक दूसरे के कैरियर को लेकर चिंतित हो चले, क्योंकि दोनों उम्र के उस पड़ाव में थे जिसमें घर वाले शादी विवाह के ताने मारा करते थे कि फलाने के बेटी बेटा का हो गया..!! या फलाने के बेटी बेटा हो गया..!!
खैर अपने यहां "चार लोग क्या कहेंगे" इसी रोग के चलते तो करोड़ो लोगों की खुशियां चूल्हें में जल जाया करती है..!!
फिर भी दोनों ने परिवार को दूर रखकर अपने कैरियर पर फिर से ध्यान देना शुरू कर दिया..!!
सब कुछ अच्छा चल रहा था कि फिर से एक बार ग्रहण लग गया, और इस बार प्रेम का वो आधार ही खत्म हो गया जिसकी वजह से ऋषभ था, हाँ, ऋषभ की माँ का देहांत हो गया...!!
और फिर क्या ऋषभ की मदद जिसने की उसको छोड़कर ऋषभ ने सबको छोड़ दिया, क्या अपने, क्या पराए...!!
क्योंकि ऋषभ को माँ द्वारा मिली सीख में सिखाया गया था कि जीवन में अपने हिस्से की जिम्मेदारी हमेशा उठाना और हर मजबूर की सहायता करना-यही तुम्हारा धर्म है..लेकिन मां की मृत्यु पर ऋषभ को गहरा आघात पहुँचा, और पहुँचें भी क्यों न, आखिर कोई भी उस मां के अंतिम दर्शन में न पहुँचा, और महीनों बीत गए कोई भी उसके दरवाजे तक नहीं गया..!!
ऋषभ को तो आदत सी हो गयी थी टूटने की,
एक बार नहीं ये दिल सौ बार है टूटा गाना सुनिए फीलिंग आ जायेगी आप लोगों को भी, पर अब दुःख उसे मिल जाता तो उसे तकलीफ न होती, क्योंकि माँ से बड़ा इस संसार मे कोई नहीं होता, ये बात वो लोग समझ सकते है जिनके सिर पर अब मां का हाथ नहीं..!!
तो उसने भी ठान लिया कि मां को दिए वचन को वो निभाएगा, परिवार के साथ ही साथ पूरे समाज को अपना प्यार बांटेगा, खुशियाँ बांटेगा..!!
और फिर उसने शुरू किया एक नया अध्याय..!!
लेकिन ऋषभ अब हद से ज्यादा बीमार है, और उसकी बीमारी ने उसको बहुत ही ज्यादा कमजोर कर दिया है..!!
उसको पैदा होने पर एक बार...
अब आगे...हां अगले भाग में भूत प्रेत वाला ऋषभ मिलेगा पढ़ने को..!!
© Nikhil S Yuva
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