खुशियों की तलाश भाग 2
#नैना तुमने ये क्यों किया यार..?? तुम्हें तो पता है न कि मैं कितना चाहता हूं पंडिताइन को..!!
इसी चाहत ने तो मुझे पागल बना दिया तुम्हारा- नैना ने ऋषभ से कहा...मतलब समझें हो गया है तुझको तो प्यार सजना, प्यार करना ही पड़ेगा अब न कर पाओगे इंकार सजना..!!
हांजी तो उड़ान भरने को तैयार ऋषभ-नैना की जोड़ी...पर जानते तो है ही कि उड़ान भरने से पहले पायलट की परमिशन और ढेर सारे रूल्स फॉलो करने पड़ते है तो यहाँ भी हुआ वही, ये नहीं करना है वो करना है, ऐसे नहीं करना है बिल्कुल ऐसे करना है..मतलब प्यार दायरों में सिमट कर रहने वाला है..और जहां प्यार सीमित वहां समझौता टाइप फीलिंग आनी तो तय थी ऋषभ को...क्योंकि ऋषभ ने तो प्यार को खुशियों की तलाश की वजह से अपनाया था..!!
#Graduation के समय में ऋषभ एक अल्हड़ प्रेमी की तरह गीतों को गुनगुनाते हुए नैना को स्नातकोत्तर तक ले जाना चाहता था, उसे पूरा भरोसा हो चला था कि अब सारी रिसर्च यही पूरी होगी और निश्चित तौर पर #MBBS की डिग्री जरूर मिलेगी..!!
#NSUI के पढ़ो पढ़ाई लड़ो लड़ाई नारे के साथ ऋषभ अपने प्यार की जंग में एक बेहतरीन योद्धा के तरह जीवन निर्वाह कर रहा उसे अपनी नैना को अपनी रानी बनाना था कि फिर से एक सौतन ने उसकी जिंदगी में प्रवेश किया..!! रुकिये रुकिये यहां सौतन कहना सही नहीं होगा उसे दुश्मन कहना है मुझे क्योंकि इस बार नैना या ऋषभ की गलती नही थी...ये दुश्मन ख़ुद ब ख़ुद दूसरे राज्य को हथियाने के लिए उनकी सीमाओं में प्रवेश करने का प्रयास
कर रहा और सफलता उसे ऋषभ के दोस्त रूप में मिली..!!
तो दोस्त से अच्छा दुश्मन कौन भला, उसको तो ये तक पता होता है कि आज आपने अंदर कुछ पहना है कि नहीं फिर क्या, वही हुआ जो अंदर कुछ न पहनने पर होता है..!! ऋषभ की इज्जत सरे आम नीलाम हो गयी, उसी तरीके से जैसे आपकी हुई थी बचपन में, जब आपने भी पेंसिल चुराई थी और आपके दोस्त ने टीचर से कहकर पकड़वा दी थी... तो क्या सोच रहे है, ऋषभ भाई के "L" लग गए...!!
नैना की आंखों में मोतियाबिंद हो गया, उनका प्यार अंधा होते होते बचा पर लूला, लंगड़ा हो गया...भचक भचक के चलने लगा, रोज-रोज गिरना आदत हो गयी और एक दिन ऐसा गिरा कि उसे संभालने के लिये दुश्मन को सहारा देना पड़ गया..!!
नैना दूसरे के सहारे पर चलने लग गई, ऋषभ का प्यार बैसाखियों के सहारे चलने लगे गया...ऋषभ जीवन में पहली बार रोया था, चिल्लाया था, उसे अपने ऊपर और अपने दुश्मन-दोस्त के ऊपर क्रोध भी बहुत आ रहा था पर क्या करता अब, सब कुछ बदल गया था..!!
उसका प्यार फिर से एक चलती बस से उतरती सवारी की तरह हो गया..!!
उसे अब इंतज़ार भी नहीं था कि कोई दूसरी सवारी बस में चढ़े...पर एक सच्चा दोस्त उसी को कहते है जिसने आपके दुःख को समझकर आपकी मदद की हो और आपको कभी बताया भी न हो...ऋषभ की जिंदगी में एक ऐसा ही दोस्त था जिसने उसके हालिया जिंदगी में ऋषभ की ईमानदारी देखी थी, पुलिस थाना लड़ाई झगड़े आत्महत्या जैसे प्रेम प्रपंच में ऋषभ को टूटते देखा था...क्या करता वो भी बस प्रयास किया करता था कि ऋषभ ठीक रहे, खुश रहे और उसने सबसे बेहतरीन रास्ता निकाला वो तो माधुरी या ऐश्वर्या से प्यार....हांजी एक प्रेमी को जब दिल पर चोट पहुँचती है तो वो गिरना या लुढ़कना जरूर चाहता है, ऐसा इसीलिये क्योंकि उसने फिल्मों में देवदास जरूर देखी होगी तो पारो के गम में माधुरी से लगाव तो होना ही था..!!
ऋषभ आदी हो गया था माधुरी का, और उधर उसके सच्चे दोस्त के परिवार से जुड़ाव भी, ऋषभ के परिस्थितियों का जिम्मेदार उसका दोस्त नहीं था, पर दोस्त के परिवार वाले उसे दोषी मानने लगे, और दोस्त की बड़ी बहन ने ऋषभ और उसके दोस्त को समझाने का प्रयास किया, और ये प्रयास ही जीवन में एक उजाला ले आने जैसा लगा ऋषभ को...और लगे भी क्यों न, अगर कोई आपसे कहे कि नशा मत लीजिये ये आपकी तबियत खराब कर देगा तो कहीं न कहीं आपको एहसास तो होगा न कि आपकी तबियत से किसी को कुछ लेना देना है..!!
ऋषभ ने माधुरी को त्याग दिया क्योंकि उसे जो ख़ुशी हमेशा से चाहिए थी वो उसे मिल गयी थी...उसकी जिंदगी में उसकी देखभाल करने वाली आशा आ गयी थी..!!
आशा को जब ऋषभ ने बताया कि वो अब से माधुरी को हाथ भी नहीं लगाया तो आशा ने उसे खूब ढेर सारा आशीर्वाद दिया क्योंकि आशा ने एक जिंदगी जो बचा ली थी... पर मंजूर तो कुछ और ही था उसके भगवान को...दिन बीतते गए...लगाव बढ़ता गया...और दूरियाँ कम होती गयी, ऋषभ की कहानियों को सुनकर आशा को भी एहसास होने लगा कि ऋषभ अकेले जीवन नहीं बिता पायेगा उसे सहारे की जरूरत है पर वो चाहकर भी आगे नहीं बढ़ सकती थी, क्योंकि वो उसके दोस्त की बड़ी बहन थी..उधर ऋषभ अपने आप को अकेला पाकर कभी कभी माधुरी से मिल लिया करता था, अकेलेपन में चीखता चिल्लाया करता था जैसे कोई भूत उसके जीवन में साथ हो गया हो..!!
इतनी दुःखी जिंदगी को लिखकर मैं परेशान हूँ... सोचिए उसके जीवन में कितना दुःख रहा होगा, अरे आपको सोचने की क्या जरूरत, आपके जीवन में भी तो हो चुका है ये सब, ये कुछ नया थोड़ी न है, सबके साथ बीत चुका है, जिसके साथ नहीं बीता, रुके रहिये कुछ दिन बीतेगा..!!
ऋषभ की जिंदगी में कोई आशा नहीं बची थी जो #MBBS के सपने देख रहा था उसको मान्यता प्राप्त कॉलेज से एक सामान्य सी डिग्री भी नसीब नहीं हुई, हर बार बैक लग जा रहा था उसके प्यार के स्नातक में, रिसर्च तो बड़ी दूर की बात है..!!
पर वो कहते है न जो होता है अच्छे के लिए होता है,
एक दिन ऋषभ को फोन आया उसके दोस्त का, कि दीदी की तबीयत खराब है तो ऋषभ घर पहुँच गया, और आशा की देखभाल के लिए जब पहली बार उसने आशा को देखा तो देखता ही रह गया...हांजी ऋषभ ने अभी तक आशा को देखा नहीं था कभी भी, सिर्फ फ़ोन पर ही बातें हुईं थी एक-दो बार वो भी सिर्फ माधुरी छुटाने के लिए...!! ऋषभ को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये छोटी सी बच्ची उसके दोस्त की बड़ी बहन और इतनी ज्ञानी कैसे हो सकती है, जिसने ऋषभ की जिंदगी को सुधारने का बेहतरीन प्रयास किया था, असल में आशा दिखने में छोटी सी मासूम सी है, इसीलिये तो वो लगाव भी उमड़ गया ऋषभ के मन में जो होना नहीं चाहिए था, पर जानते तो है आप लोग, ये लगाव ही तो है जो आपको किसी को भी प्यार करने की अनुमति दे देता है...चाहे वो आपके घर के ही सदस्य क्यों न हो..??
एक दिन ऋषभ ने आशा को अपनी आशा बताई, और जवाब में ऋषभ ने निराशा पाई--- "सुनिए आप न बहुत अच्छे है, पर आपको हमसे भी अच्छे लोग मिल जाएंगे, मेरे पीछे अपनी तबियत न खराब कीजिये...!!" ये बात आशा ने दबे मन से ऋषभ को बताई..!!
अब आगे अगले लेख में...
© Nikhil S Yuva
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करते है, आशा करते है कि आपको हमारे लेख पसन्द आ रहे है तो कृपया इस ब्लॉग को शेयर करें।