खुशियों की तलाश भाग 3
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सुनिये कहानी फलों के राजा आम की..!!
लंगडा आम का नाम पहले तगड़ा आम था..।
उसका नाम लंगड़ा आम कैसे पड़ा उसके पीछे एक कहानी है...
दशहरी के पापा ने दशहरी का रिश्ता चौसा आम के साथ तय कर दिया था। लेकिन तगडा उसे चाहता था।
वो रोज दशहरी के गली का चक्कर लगाने आ जाता था।
एक दिन वो दशहरी को प्रपोज करने गया और चौसा ने उसे पकड़कर कूट दिया और तगड़ा आम का एक पैर टूट गया तब से उसका नाम लंगड़ा आम पड़ गया..🤣🤣🤣
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इन सबके प्रायोजक है Nikhil S Yuva
अब आगे...आशा ने तो ऋषभ को प्यार न करने के बजाय प्यार करने की वजह दे दी थी अपनी वो शब्दों से जिसमें बेपनाह परवाह छुपी हुई थी..!!
आशा ने ऋषभ से यह भी कहा कि वह किसी और से बातें करती है और उसके घर वालों ने उसके लिये हां भी कर दी है, पर ऋषभ को उसकी बातों पर विश्वास न हुआ, उसने अपने दोस्त से इस बात की जिक्र किया तो उसने बताया कि पापा के दोस्त तो है लेकिन उनसे दीदी की बात हुई है कुछ इसके विषय में बहुत ख़ास जानकारी नहीं है, यह सुनकर ऋषभ के जीवन में एक बार फिर से गम के बादल छाने लगे थे...क्योंकि आशा की निराशाजनक बातें उसके दिमाग में घर कर गयी..!!
ऋषभ फिर गुमसुम रहने लगा,
पढ़ाई में भी मन नहीं लगा, बिल्कुल वही हाल हुआ जो अभी आप लोगों का है, #lockdown के वक़्त में आप लोग भी अपनी प्रेमिकाओं से लड़ झगड़ बैठे है सिर्फ इसीलिये न कि वो आपको समय नहीं दे पाती परिवार के चलते और आप ख़लीहर बैठे है...तो खुराफ़ात के चलते..!!
तो ऋषभ भी खुराफ़ात करने की सोच लिए, वही #typical #प्रेमी वाला हाल की तुम नहीं मिलोगी तो कूद जाऊंगा,फांद जाऊंगा, जान दे दूंगा टंकी से कूदकर- जैसे शोले में बसंती के प्यार में हुआ था..!! तो क्या सोच रहे है आप लोग ऋषभ भी बहुत अच्छे वाले प्रेमियों में से थे, उन्होंने पहले आशा से उनकी चूड़ी मांगी यह कहकर कि हमें एक आख़िरी निशानी दे दो, और फिर उसी चूड़ी से खुद को नुकसान पहुँचा लिए, मतलब साफ़ है कि अब ऋषभ प्रेमी, पागल, आवारा, कहलाने लायक हो गए थे।
ऋषभ के उस हालात के जिम्मेदार कौन था---कोई सोचे आशा, कोई सोचें ऋषभ लेकिन मैं सोचूं सब...!!
ऋषभ को प्यार न मिलने की वजह से जो तकलीफ़ हो रही थी उसका परिणाम था खुद को नुकसान पहुँचाना...अक्सर आपके साथ भी हुआ होगा जब आप तकलीफ में होते है तो खुद को ही नुकसान पहुँचाते है क्योंकि आप अपने आपे में नहीं होते...और खोने का दुःख तो ऋषभ को हो ही रहा था...लेकिन इन सबमें उसे एक अनचाही खुशी मिल गयी वो था अचानक से आशा का लड़खड़ाना और ऋषभ का उसको संभालना..!!
जी हाँ, ऋषभ ने उसे सम्भाल लिया, और फिर उसके हर पल को संभालें रखने का वादा किया, हर लड़की को ऐसे ही जीवनसाथी की तलाश होती है कि लड़का हमेशा उसकी कद्र करे, उसकी सुरक्षा करें, उसके भविष्य की नीतियों में उसका साथ दें...और ऐसा करने में ऋषभ ने कोई कसर नहीं छोड़ी...ऋषभ ने पढ़ाई, कमाई (ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन) सब कुछ आशा और अपनी आने वाली जिंदगी के लिए करना शुरू कर दिया..!!
ऋषभ ने बहुत कम वक्त (6 वर्ष) में नाम व शोहरत पाई, पढ़ाई में भी अव्वल, कमाई में भी अव्वल और उसकी बदौलत उसने अपने और आशा के घर वालों को भी एक दूसरे के प्रेम की दास्ताँ को सुना दिया और शादी जैसे पवित्र रिश्ते को निभाने का मन बना लिया...!!
सब कुछ बहुत ही सुखमयी हो गया, सुबह की चाय उसकी आवाज के साथ और शाम की नमकीन उसके सपनों के साथ बीतने लग गयी, महीनों में होने वाली मुलाकातों को दिनों में बदलने के लिए प्रयास किये जाने लगे, बहाने बनाना भी कितना आसान होता है प्रेमी प्रेमिकाओं को, ये आपसे तो छुपा नहीं है तो क्या ही बताना...बस यूं समझ लीजिए कि ऋषभ की खुशियों की तलाश में खुशियों की एक पोटली उसे मिल गई।
सुनिये न आप न मुझसे शादी कर लीजिए छुपी वाली,
मेरी मांग में सिंदूर लगा दीजिये, मैं न इसे छुपाकर लगा लिया करूंगी और मैं न आपके लिए व्रत रखना चाहती हूँ, तीज का..आशा ने बहुत से सपने संजोते हुए यह बात ऋषभ से कही तो ऋषभ ने भी आव न देखा ताव, एकदम फिल्मी स्टाइल में हाथ से रक्त की कुछ बूंदों को बहाकर उसके माथे का सिंदूर बना दिया...और एक दूसरे के आलिंगन में बंधकर रह गए..!! उसके बाद से पति पत्नी जैसा रिश्ता नहीं पति पत्नी बनकर ही दोनो ने रिश्तों को आगे बढाया, ऋषभ आशा दोनों ने कैरिएर पर ध्यान दिया और रिश्तों को सुखद बनाने के लिए एक दुसरे के सफल सहयोगी के रूप में आगे बढ़े..!!
जीवन भर आप हम सब यही पल जीने के लिए बेताब रहते है कि कोई प्यार करने वाला हमें मिलेगा तो हम ये कर देंगे, हम वो कर देंगे...और कई भाइयों बहनों ने तो प्यार के झंडे गाड़ भी दिए है उसी की कड़ी में ऋषभ ने भी झंडे गाड़ ही दिए अब बस बारी थी उनकी गृहस्थी को संभालने के लिए सामाजिक शादी की..!!
आशा की माँ से ऋषभ ने बात की तो उन्होंने कहा कि हम उनसे नहीं कह पाएंगे, आप कहिए नहीं तो वो हमें कहेंगे कि हमारी वजह से ये सब हुआ है...!!
ऋषभ की माँ से आशा ने बात की तो उन्होंने कहा कि बेटा अभी तो शादी के लिए ऋषभ की उम्र हुई नहीं है, जब होगी तो हम देखेंगे, अभी से क्या ही कहे कुछ, फिर भी तुम लोगो की खुशी में हम खुश है, जब ऋषभ के भैया की शादी हो जाएगी तो तुम लोगो के बारे में सोचेंगे..!!
और इन सब बातों से एक बात तो ज़ाहिर हो गयी थी कि सामाजिक परिस्थितियों की जो हालात आज है वही पहले भी थे, बहुत कुछ बदलाव आ नहीं पाया है, इसे रूढ़िवादी सभ्यता कहिए या जरूरत के संस्कार...क्योंकि लाभ और हानि दोनो होते है, जैसे सिक्के के दो पहलूँ होते है क्यों सामाजिक ज्ञानियों, कुछ गलत कहूँ तो कहना, सोच क्या रहे हो जब खुद करते तो वो गलत नहीं होता, दुसरो के करने पर वो गलत हो जाता है न...,क्योंकि ख़ुद की गलतियां तो किसी को दिखती ही नहीं तो तुम्हे कहाँ से दिखाई देंगी...खैर समाज को समझाने जाईयेगा तो चार लोग आ जाएंगे आपको समझाने, क्योंकि इन लोगों को आपकी खुशियों से तकलीफ होती है, आप भी बराबरी का दर्जा पा जाएंगे तो ये जाति धर्म की लड़ाई के नाम पर कमाई कहाँ से कर पाएंगे...!!
ये सब मैं लिखना नहीं चाहता था पर ऋषभ आशा के प्रेमी गृहस्थ जीवन में इन सब बातों को देखा गया तो कह दिया, ख़ैर ऋषभ-आशा ने बहुत ज्यादा उन सब बातों पर ध्यान न रखकर तीज, करवा, वैलेंटाइन, मंदिर जैसे सभी धार्मिक प्यार की मान्यताओं को भी पूरा करना शुरू कर दिया..!!
इसी बीच एक #धमाका हुआ जिसमें ऋषभ और आशा की प्रेमी जिंदगी का सब कुछ खत्म हो गया..!!
अब आगे....अगले पृष्ठ अंक में..!!
क्या प्यार की रिसर्च अधूरी रह जायेगी..??
क्या ऋषभ की खुशियों की तलाश अब भी जारी रहेगी..??
इसके लिए थोड़ा इंतज़ार कीजिये...!!
© Nikhil S Yuva
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