खुशियों की तलाश भाग 4
मेरे घर वाले शादी का दबाव बना रहे है ऋषभ, कुछ करिये नहीं तो मेरे घर वाले मेरी शादी किसी और से करा देंगे..!!आपमें से कितनों के साथ ये हो चुका होगा,लेकिन क्या कभी आशा ने सोचा कि ऋषभ के भी तो घर वाले होंगे.?
जी हाँ उसी कहानी का हिस्सा है ये, जिसकी शुरुआत ऋषभ ने की थी---- #खुशियो_की_तलाश
मोहब्बत के हर पायदान पर ख़तरा क्यों मंडरा रहा होता है..?? क्यों हर कोई अपनी मोहब्बत को पाने में किसी अनजान से डर से लड़ रहा होता है..?? आख़िर क्यों आपकी जिंदगी में जिन पलों से खुशियां मिल रही होती है उन पलों को पलभर भी नहीं लगते बदलने में..??
ऐसे कई सवाल ऋषभ के जहन में उतर रहे होंगे, जब आशा के मन की आस ने उसे टटोलने की कोशिश की, आशा न चाहते हुए भी ऐसे प्रश्न कर रही थी क्योंकि आशा को अब तक उसकी पत्नी का दर्जा नहीं मिल पाया और उसके घर वालों ने उसकी शादी के लिए लड़के खोजने भी शुरू कर दिए...!!
ऋषभ ने उस प्रश्न के उत्तर को बड़ी सहजता से दिया पर उसे समझ पाना किसी भी लड़की के लिए सम्भव नहीं होता---- ऋषभ ने कहा कि हमने तो अपने घर पर जिद करके तुम्हे पाने की हर सम्भव कोशिश कर ली है और अब तुम्हें भी अपने घर में जिद करनी होगी क्योंकि जिद ही है जिसने हमे बचपन में खिलौने और बड़े होने पर मनपसंद विषय की किताबें पढ़ने को दिलाई थी तो आख़िर वक़्त में जब जीवन का सबसे बड़ा विषय जीवनसाथी चुनने का वक़्त है तो उसपर जिद क्यों नहीं..??
और इन्हीं सबमें एक धमाका हुआ..!!
ऋषभ के बड़े भाई ने गैर जातीय प्रेम विवाह कर लिया जिसमें परिवार व समाज के कई हिस्सों ने उनको सामाजिक व पारिवारिक हिस्सेदारी से अलग कर दिया, सिवाय उनकी माँ पिता और भाई के..!!
ऋषभ की भाभी के घर वालों ने भी उनका परित्याग कर दिया पर ऋषभ के भाई- भाभी ने प्यार को पाने की जो जिद ठानी थी वो प्यार का सर्टिफिकेट शादी के रूप में उन्हें मिल गई..!!
अब आप सोच रहे होंगे ये तो अच्छा ही हुआ, इसमें धमाका कैसा..??
असल में प्रेम विवाह में आने वाली अड़चनों की वजह से ऋषभ के माता पिता काफी बीमार हो गए, क्योंकि वो सामाजिक बंधनो से बंधे हुए थे उन्हें बच्चों की खुशियां ने खुश तो कर दिया था पर सामाजिक बंधनो के टूटने से वो काफी दुःखी हो गए और बीमारी ने उनको घेर लिया।
यह सब देखकर ऋषभ की हिम्मत टूट गयी...और एक रात आशा के फ़ोन ने उसको मजबूर कर दिया जब आशा ने कहा--- सुनिए आपके जीवन में मैं भी हूँ और अब जब भैया भाभी का मिलन भी हो गया है तो अब हम लोगों में क्या समस्या है, हम घर छोड़कर भागने के लिए तैयार है।
यह सुनकर ऋषभ के अंतर्मन में जो ध्वनि उठी उसे आप लोग भी शायद समझ गए होंगे, उसका सोचना सिर्फ इतना था कि शादी विवाह जैसे बंधनो में जुड़ने के लिए सामाजिक बंधनो से मुक्त होना कैसे सही हो सकता है..??
जब किसी एक प्यार की खुशियों को पाने में उसने इतनी जद्दोजहद की थी तो उसने मन बना लिया कि वो परिवार और समाज के प्यार के बंधनों को नहीं तोड़ पायेगा, अगर वो गैर जातीय विवाह के बंधन में बंधेगा तो दोनों परिवारों की सहमति से बंधेगा, जिससे उनका परिवार और समाज दोनों उन्हें प्यार करेगा..!!
क्योंकि वो जानता था कि कोई भी लड़की-लड़का अपने परिवार को छोड़कर खुश नहीं रह सकते है, इसीलिये उसने आशा से कहा--- बाबू हम एक तभी हो सकते है जब हमारा परिवार सहमति देगा, अन्यथा की स्थिति में हमारा ऐसे ही अलग अलग घरों में रहना ठीक होगा।
लेकिन आप फिर से मेरे इस पृष्ठ की पहली लाइन को पढियेगा..!!
मेरे घर वाले शादी का दबाव बना रहे है ऋषभ,
कुछ करिये नहीं तो मेरे घर वाले मेरी शादी किसी और से करा देंगे..!!
क्या सब कुछ करने का ठेका सिर्फ ऋषभ ने ले रखा था,
आशा की कोई जिम्मेदारी नहीं थी, आशा खुद के ऊपर पड़ रहे दवाब को ऋषभ पर डाल रही थी और ये दबाव इतना बढ़ गया कि ऋषभ ने एक दिन आशा को सामाजिक दृष्टि से प्यार को पाने की बात समझाने की कोशिश की लेकिन आशा को कुछ भी समझा पाना असंभव हो चला था..!!
ऋषभ ने जब खुद के घर में शादी की बात कही तो ऋषभ की माँ ने कहा- एक ने कर ली , तुम भी करके थोड़ी बची इज्जत नीलाम कर दो, बाकी हमारे सारे सपने तो चूर हो ही गए, सोचा था बारात में लड़की वालों के यहां जाएंगे, ढेर सारी खुशियाँ एक साथ लेकर आएंगे...लेकिन सब अधूरा रह गया और अब तुमसे एक आस है और तुम भी..!!
ऋषभ ने ये सब सुनकर निर्णय कर लिया कि वो जीवन में अब कभी खुशियों की तलाश में नहीं भटकेगा, उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर आशा को कहा कि मैं अपने समय को तुम्हे जैसे पहले देता था वैसे ही दिया करूँगा और माँ पिता के देहांत के बाद तुम्हे अपना पाऊंगा, उससे पहले तुम्हे अपना पाना मेरे लिए संभव नहीं है। और इतना कहकर टूटा हुआ ऋषभ और भी ज्यादा टूट गया..!!
उसके अंदर के रुदन को आशा समझ गयी उसने उसे समझाया कि आप रोईए बिल्कुल भी नहीं, आप हमें यूं ही प्यार करते रहिए, जो लिखा होगा किस्मत में वो मिलेगा...और यह कहकर वो भी रोने लगी..!!
दोनों के जीवन में जहां खुशियों की तलाश छुपी हुई थी,
वो तलाश अब दुःखों का कारण बन गई। आशा तो पहले से ही बीमार रहा करती थी, अब ऋषभ भी बीमार होने लगा..!!
एक दिन ऋषभ ने आशा को प्यार न करने का आदेश सुना दिया क्योंकि वो नहीं चाहता कि उसके दुःखों का कारण वो पूरी जिंदगी बना रहे।
इसके बाद भी आशा उसे भूलने को तैयार नहीं हुई क्योंकि ऋषभ ने उसकी पढ़ाई के साथ साथ उसकी बीमारी में भी उसकी देखभाल की थी, और दिल के साफ़ इंसान को भूल पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है...आप भी आज तक उन लोगों को नहीं भूले होंगे जिन्होंने आपसे बेमतलब प्यार किया होगा..!!
ऋषभ ने धीरे धीरे आशा से मिलना कम कर दिया,
फिर बात करना कम कर दिया और एक ऐसी कोशिश कर दी जिसका मूल्यांकन कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं, सिवाय ऋषभ के..!!
ऋषभ और आशा एक दूसरे के साथ रह भी नहीं सकते थे, और एक दूसरे को छोड़ भी नहीं सकते थे, ऐसे प्रेम को सिर्फ समाज और परिवार के बंधन ने नफ़रत में बदलने का स्वरूप ले लिया..!!
ऋषभ कैसे भी करके आशा को पूरी जिंदगी खुश देखना चाहता था इसके लिए उसने अपने चरित्र को ही गन्दा साबित करने की हर संभव कोशिश कर डाली...आशा से संबंधित लोग भी जानते थे कि ऋषभ बहुत ही साफ दिल का इंसान है वो कभी भी किसी का सुना कुछ मानने को तैयार ही नहीं होते थे, ऋषभ ने कई लड़कियों से बात करके भी साबित करने की कोशिश की कि आशा उसे चरित्रहीन समझ लें पर आशा को ऋषभ पर खुद से ज्यादा यकीन था..!!
जब ऋषभ के सभी प्रयास विफल रहे तब ऋषभ ने एक परेशान लड़की की मदद से आशा को फ़ोन करके कहलवाया था कि वो ऋषभ ने बच्चों की माँ है..!!
और यह सुनकर आशा ने कहा कि कोई बात नहीं हम जानते है उनको, वो मेरे अलावा किसी को कभी नहीं छुए है और न ही छुएंगे..!! आप यदि उनकी पत्नी है तो उनसे पुछवा दीजिये...और कॉन्फ्रेंस पर हुई कॉल वो आख़िरी कॉल थी...ऋषभ ने हामी भर दी..!!
ऋषभ आशा के जीवन का पहला और आख़िरी अध्याय समाप्ति की ओर था, ऋषभ ने आशा के लिए जो सपने देखे थे वो भी टूट गए और आशा ने भी ऋषभ के लिए जो सपने देखे थे वो भी टूट गए..!!
आशा के मन में पता नहीं कितनी नफ़रत होगी,
ऋषभ के लिए, होगी भी या नहीं होगी...पता नहीं..!!
लेकिन खुशियों की जिस तलाश में ऋषभ निकला था वो अभी तक पूरी नहीं हो पाई..!!
आगे की कहानी जल्द ही आपको मिलेगी..!!
इस कहानी में अभी बहुत कुछ बाकी है...!!
क्योंकि खुशियों की तलाश जारी है..!!
© Nikhil S Yuva
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