खुशियों की तलाश भाग 9
जिंदगी में रिश्ते बनाना बहुत आसान है, उसे निभाना बहुत मुश्किल..!!
जी हाँ ऋषभ की मां ने ये बात ऋषभ को अपने जीते जी सिखाई थी..!! लेकिन रिश्ते किसी एक के चाहने से तो बेहतर हो नहीं सकते..इस बात की पुष्टि उनके जीवन ने ही कर दी थी..!!
ऋषभ की माँ ने अपनी ननदो, अपने देवरों, अपनी बहनों, अपने भाइयों, अपने बेटों, अपने पति सभी के रिश्ते को निभाने में शत प्रतिशत ईमानदारी दिखाई थी, लेकिन एक आध रिश्तों को छोड़कर बाकी सबने अज्ञानता वश या कह लीजिए व्यस्तता वश या खुलकर कह दूं तो स्वार्थ वश, बेईमानी ही की..!!
आपके साथ भी होता होगा जब आप किसी रिश्ते के प्रति 100% ईमानदार होते है तो आपको उम्मीद हो जाती होगी कि आपका रिश्तेदार भी आपके प्रति 100% ईमानदार हो..!! लेकिन प्राकृतिक रूप से यह संभावना बहुत कम ही होती है क्योंकि मानव मस्तिष्क में भार सभी लोग नहीं झेल सकते या यूं समझिये कि मस्तिष्क में सभी के लिए प्यार, सेवा सदभाव रख पाना सम्भव नहीं होता..!!
और इसी के चलते आपकी उम्मीदों पर हर कोई खरा नहीं उतरता..!!
यह बात ऋषभ की माँ ने अपने पूरे जीवनकाल के दौर में सीख ली थी और ऋषभ को सिखाया भी था कि विपत्ति के समय में जो तुम्हारे साथ खड़ा हो वो तुम्हारा अभिन्न दोस्त और जो न खड़ा हो वो सिर्फ दोस्त कहलाने लायक होता है.!! और हमें हमेशा दोनों तरह के दोस्तों के लिए जीवन में हर संभव मदद करते रहना चाहिए जिससे वो दो तरह के दोस्तों में तुलनात्मक भावना बनी रहे..और वो हमेशा प्रयास करते रहे उच्चतम श्रेणी के दोस्त बनने की..क्योंकि आपकी उपयोगिता ही आपके जीवन को सार्थक करती है..!!
और उन्ही सब के चलते ऋषभ की माँ ने सभी रिश्तों के प्रति ईमानदारी दिखाई और इसीलिए मेरी कलम भी उनकी मुरीद हो गई... उनके हर किस्सों को लिखने के लिए लालायित हो गयी..!!
मुझसे एक लेखक ने अपना अनुभव बताया था कि जीवन में माँ बाप के सामने बच्चों के निधन से ज्यादा दुःख, बच्चों के आंख के सामने माँ बाप के निधन का होता है..!! और जब उन्होंने इस बात का जिक्र किया था तो मुझे एहसास हो गया था इस बात कि जीवनचक्र की परिधि में जिसने ज्यादा उम्र परिधि के चक्कर लगाए है वो ज्यादा अनुभवी होता है और उसे दुःख भी उतना कम होता है..!!
ऋषभ की माँ के गुजर जाने का दुःख ऋषभ की माँ के दुःख से कम था...यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ऋषभ की माँ ने अपनी माँ को अपने बचपन में ही खो दिया था, और माँ की कमी कभी कोई भी पूरी नही कर सकता, और न ही उस संवदेना को व्यक्त किया जा सकता है..!!
ऋषभ की माँ की एक आस थी कि उनकी सास शायद वो कमी पूरी करने का साधन बनेगी पर वो आस भी उसकी अधूरी रह गयी, जिस दिन उसे परिवार से बहिष्कृत किया गया था, वजह सिर्फ वही बनावटी समाज, जिसको आप प्रतिदिन देखा करते है...बहुएं अच्छी होंगी तो सास के नख़रे होंगे और सास अच्छी होंगी तो बहुओं के नखरें होंगे...इन दोनों के रिश्तों पर तो न जाने कितने लेखकों ने कथाएं, किवदंतियां और नाटक रच डाले है..!! लेकिन दुःख इसी बात का है कि सुधारने के प्रयास किसी ने नहीं किये..!!
चाहे तो इस रिश्ते को सुधारा और बेहतर बनाया जा सकता है, सिर्फ एक संवाद मात्र से...लेकिन टेलीविजन के सीरियलों ने बची कूची कसर भी निकाल दिया...ऐसे ऐसे संवाद प्रस्तुत कर डाले जिनके चलते शक का कीड़ा पैदा हो चला...और बनते रिश्ते भी बिगड़ने लग गए..!!
आधुनिक समाज पुराने समाज से बेहतर बनने के लिए टेलीविजन का सहारा ले लिया और टेलीविजन ने रिश्तों को बेसहारा कर दिया..!! क्राइम सीन बनाकर प्रदर्शित करके हर घर में लंका बना दी...जहां रोज एक सीता जलाई जाने लगी...या तो द्रौपदी के चीरहरण पर अट्टहास करने वाली महाभारत प्रदर्शित कर डाली..जिसका प्रभाव आधुनिक समाज ने अपने अपने मानव मस्तिष्क पर झोंक दिया...और फलस्वरूप सिर्फ तनाव मिला और अंततः रिश्तों की डोर टूट रही..!!
कोशिश कीजियेगा कि पढ़ने के बाद विचार भी कीजियेगा कि कहीं आप भी टेलीविजन के चलते अपने किसी रिश्ते से दूर तो नहीं हो रहे, अगर हो रहे तो हमसे भी जुड़ सकते है क्योंकि हम प्रयासरत है रिश्तों और समाज को सुधारने में..!!
ये तो था अपना एक छोटा सा प्रचार, जो टेलीविजन में लंबा लंबा दिखाया जाता है..!!
अब आते है ऋषभ की कहानी पर..!!
ऋषभ की माँ ने जो शिक्षा दी उस शिक्षा पर चलते हुए ऋषभ ने सभी के मन की मुरादे पूरी करने की ठान ली, ऋषभ से जो कुछ बन पड़ता था वो अपने समाज के लिए करता था, वो समाज जिसको उसने अपने दम पर बनाया था, उसमें उसकी प्रेमिकाओं, दोस्तों, रिश्तेदारों सभी ने उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकन किया होगा...!!
पर हमारा मूल्यांकन ऐसा रहा कि हमने उसपर किताब ही लिखने का मन बना लिया और अभी तक 8 भाग लिख डाले... और अभी भी मूल्यांकन जारी है...क्योंकि ऋषभ की कहानी आप जैसी ही है...उसके साथ भी वही सब घटित हो रहा जो आपके साथ भी हुआ है..थोड़ा कम थोड़ा ज्यादा...और इसीलिये आप रोमांचित होकर पढ़ भी रहे क्योंकि आपको भी जानना है कि क्या जो आपके साथ हुआ वही ऋषभ के साथ भी हुआ होगा या कुछ अलग होगा..!!
अगर ऐसा ही है तो कहानी पढ़ने के बाद और लोगों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित कीजियेगा क्योंकि मेरा मानना है कि लेखक लिखता ही समाज के लिए है क्योंकि उसे तो आता ही है सब कुछ वो चाहता है कि और कोई भी सीखकर उसके जैसा बन सके और समाज को एक नई राह पर ले जा सकें..!!
ख़ैर मेरे बार बार विषय से भटकने पर आप का इंटरेस्ट न खत्म हो जाये ये डर भी लगा रहता है क्योंकि ये किताब गुस्से में अगर फाड़ दी जाएगी या कहीं फेंक दी जाएगी तो इसका महत्व रद्दी का भी न रह जायेगा...इस किताब में सिर्फ एक जिंदगी नहीं हजारों लाखों पर बीती सच्ची कहानी से मिलने वाली प्रेरणा का सार है..!!
तो आईये कहानी पर चलते है...!! या थोड़ा प्रचार वगैरह देखेंगे जैसे टेलीविजन पर देखा करते है...!!
#LIC जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी..!!
अब आगे...ऋषभ की माँ अपनी जिंदगी में खुश रहकर भी नाखुश ही थी क्योंकि ऋषभ बार बार असफ़ल हो रहा था..और उसकी वजह वह नहीं था..उसका स्वास्थ्य जन्म में हुई अनजानी गलतियों से और वर्तमान में हुई बुरी शक्तियों से बिगड़ रहा था...जिसको लेकर ऋषभ की माँ हमेशा चिंतित रहा करती थी..!!
ऋषभ को स्वास्थ्य कमजोर नहीं कर पाता था...वो बीमार होने के साथ ही साथ चंचल मन के चलते कभी खुद को महसूस ही नहीं होने देता था कि वो बीमार है...और उसकी इसी अदा से उसके जीने की चाह बढ़ती रहती थी...नहीं तो आज के दौर में बीमारियों के तनाव के चलते आत्महत्या करना स्वभाविक था..!!
किया तो ऋषभ ने भी आत्महत्या का प्रयास था, लेकिन वजह पिताजी की डांट थी, न कि बीमारियों का कोई तनाव..!!
ऋषभ ने आत्महत्या के प्रयास में पंखे भी तोड़े थे एक बार...हुआ ये था कि असफ़लता जब आपको झकझोर देती है तो आप न चाहते हुए भी ऐसे प्रयास कर उठते है...,ऋषभ को कानपुर में जिस लड़की से विवाह करने का मन था, उसकी बड़ी बहन से अनुतोष भाई ने विवाह कर लिया था और उसी के चलते एक घर में जो बहनों के बहु न बनने की प्रथा उसे सुनने को मिल गयी थी...और उसी के कुछ ही महीने बाद नैना की मृत्यु की ख़बर के झटके ने ऋषभ के पंखे को तोड़ दिया था...ख़ैर पंखें पर आत्महत्या करने का प्रयास आप तभी कीजियेगा जब पंखे का रॉड और फंदा मजबूत हो नहीं तो खामखा आपका भी वही हाल होगा जो ऋषभ का हुआ था..!!
ये ऋषभ का पहला अनुभव था, इसके बाद ऋषभ ने भी आप जैसे हाथ काटने का प्रयास किया था, इसकी वजह भी आप जैसे ही थी...!! पता नहीं आपने कभी ALLOUT पीकर मरने का प्रयास किया है कि नहीं, लेकिन ऋषभ ने किया था...लेकिन हुआ कुछ भी नहीं था किसी भी प्रयास में...क्योंकि ऋषभ क्या आप भी करेंगे तो कुछ नहीं होगा क्योंकि आजकल ये सब ट्रेंड में है...इससे सिर्फ सहानुभूति मिलती है मौत नहीं..!! क्यों सही कह रहा हूँ न..??
ऋषभ के उस प्रयास पर मुझे काफ़ी झटके लगे थे जब ऋषभ गंगा नदी में कूदकर जान देने के प्रयास में घर से नंगे पैर निकल पड़ा था...सिर्फ इसलिए क्योंकि उस वक़्त उसके जीवन में अंधेरा छाया था न तो आशा थी, न किसी भी व्यक्ति ने उसको रोका था...बस छलांग लगाने से पूर्व उसने अपने एक मित्र से बात की थी और उस मित्र ने उससे कहा था कि मरने के बाद लोग यही कहेंगे कि कायर था...और जिंदगी भर तुम्हारी वजह से तुम्हारे परिवार वाले दुःखी रहेंगे..!! और उसकी बात ऋषभ को समझ आ गयी थी कि जिंदगी के मेले में हर चीज़ ख़रीदी जा सके ये संभव नहीं..!!
जब ऋषभ ने समझ ली तो आप भी समझ लीजियेगा, कभी भी मन में ऐसे विचार पैदा हो तो सोच लीजियेगा कि आपके ऐसे जाने से आपका अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा..!! अपने अस्तित्व की पहचान बनानी है तो लड़कर मरियेगा अपने हक के लिए..!!
खैर आपका ऋषभ अभी जिंदा है क्योंकि टाइगर भी अभी जिंदा है..!!
अब इसके आगे की कहानी अगले भाग में..!!
बाहर अंधेरा है, अंदर उजाला..!!
ये तुमने क्या कर डाला..!!
#मन #खुशियों_की_तलाश
© Nikhil S Yuva
आपकी उपयोगिता ही आपके जीवन को सार्थक करती है।
जवाब देंहटाएंशानदार, प्रत्येक शब्द आपके भावों की अलंकृत व्याख्यान और सार्थक पहल भी है।
अभिवादन!
💛💛
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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