प्रेम ही जीवन है..!!

 जब मानव बच्चा होता है तो किसी भी प्रकार के भेदभाव को नहीं जानता, वह जानता है तो सिर्फ प्रेम की बोली...और उसे जो प्यार से पुचकारता है वो बच्चा उसी के पास चला जाता है..!!

समय के साथ बच्चा बड़ा होता है,

हर तरीके का भेदभाव सीखता है..!!

लेकिन बचपन की तरह जिस तरफ से प्रेम पाता है,

उधर ही चला जाता है..!!


क्योंकि मानवीय प्रकृति ही है जो अपनापन महसूस करती है ढेर सारे भेदभावों से परिपूर्ण..!!


मन में ढेर सारा अविश्वास लिए जीता मानव..!!


ऐसा नहीं लगता आप लोगों को,

कि आप अभी जितना जानते है वो कम है..!!


अभी और जानने की आवश्यकता है आपको..!!

कितना समझ पाते है आप दूसरों को, खुद को..!!


अगर नहीं समझ पाते तो सीखिए फिर आंकिये..!!


बात बात पर खुद को या दूसरों को ग़लत ठहराने से इस मानवीय प्रकृति का ही नुकसान होगा..!!


मैंने 15 सालों में हजारों केस देखें है,

जहां पर मात्र एक अविश्वास से घर टूटे थे..!!


मैंने देखा था,

भाइयों को भाइयों के साथ लड़ते चंद ग़ज़ जमीन के लिए, सास को बहु से लड़ते, भाई को बहन से लड़ते, दोस्त को दोस्त से लड़ते, पति को पत्नी से लड़ते, अजनबी को अजनबी से लड़ते..!!


आख़िर मिल क्या गया लड़कर...??


ये सवाल खुद से पूछियेगा...,

क्योंकि लड़ते तो आप भी होंगे खुद से..!!


मैं वर्षों से लिखता चला आ रहा हूँ कि अगर आप प्रेम की भाषा नहीं सीख सकते तो आप मानवीय प्रकृति के है ही नहीं...अभी भी आप उसी रूप में है जिस रूप में मानव की उत्पत्ति हुई थी..!! जो अकेले जीवन व्यतीत करता था, सिर्फ खाने और पीने को ही जीवन समझता था...और एक दिन दुनिया से विदा ले लेता था..शायद जिसका इतिहास भी इतना अच्छा नहीं कि कोई उस पल का जिक्र भी करना चाहे..!!


मेरी लिखे लेखों में या मेरे द्वारा मंचों पर कहे गए वक्तव्यों में मैंने हमेशा प्रेम से जीने की बात कही...क्योंकि अगर आप प्रेमी नहीं तो आप स्वयं के साथ साथ इस पूरी सामाजिक दुनिया के दुश्मन बन बैठ रहे है...जो इस समाज को तहस नहस कर देगा..!!


उदाहरण----


1. गुप्ता जनरल स्टोर( ये किसी सार्वजनिक नाम से क्यों नहीं है)

2. केसरवानी चाट भंडार( ये किसी सार्वजनिक नाम से क्यों नहीं है)

3. आजकल हिन्दू मुस्लिम पर ज्यादा मामला चल रहा(कावड़ यात्रा के रास्ते मे दुकानों के नाम पर चर्चा)

4. अरे वो देखो उसने फलाने जाति में विवाह कर लिया..!!

5. अरे पूरा पैसा लुटा रहे है भाई पर पिताजी(बहन के पति के बोल)

6. अरे उसका चक्कर चल रहा उसके साथ( हर दोस्त के दोस्त के बोल)

7. अरे वो लड़की सुबह चली जाती है शाम को आती है, पक्का कोई चक्कर है(पड़ोसियों के बोल)

8. वो देखो हंसकर देख रही, पक्का पट जाएगी( दोस्तों के बोल)

9. मेरा घर तुम्हारा घर( हर घर की कहानी)

10. क्योंकि सास भी कभी बहु थी( सीरियल की कहानी)


ये उदहारण दस का दम, आपके नाम..!!


ऐसे अनेकों उदाहरण आप स्वयं कमेंट में डाल दीजिए, जो आपने सुने हो या बोले हो..!!


तब आपको समझ में आएगा कि आपने प्रेम को किस तरह से विखंडित कर दिया है..!! प्रेम, प्यार, अपनापन, लगाव ये सब जिस किसी रिश्ते में व्याप्त है वही आज सर्वाधिक सार्वजनिक है...बाकी सब दिखावा है..ढोंग है, लालच है, अपनों में फैल रहा वैमनस्य है..!!


समय रहते समझ जाईये,

नहीं तो एक दिन आपको अपने से भी ज्यादा चाहने वाला  किसी के पुचकारने पर किसी और ओर चला जायेगा..और फिर जो गांठ अविश्वास की पड़ेगी वो शायद ही कभी खुल पाएगी..!!


नोट: प्रेम हर किसी के जीवन की कहानी है,

        हर रिश्ते में प्रेम व्याप्त होता है..!!

        तो कृपया करके रिश्तों को दाग़दार होने से बचाये..!!

       भरसक प्रयास करें रिश्तों की डोर को समझने की...!!

        नहीं तो एक दिन सब विखंडित हो जाएगा..!!

        भाई- भाई से...बहन भाई से...दोस्त दोस्त से...!!

        पति- पत्नी से...समधन समधी से...बाप- बेटे से..!!


तो प्रण लीजिये कि त्याग समर्पण की भावना लेकर मानवीय प्रकृति की रक्षा करने में प्रेम भावना को जागृत करेंगे।


#जयमानव_तयमानव


© Nikhil S Yuva

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