उधेड़बुन
"कई दिनों से #उधेड़बुन में हूँ..!!"
जीवंत जीवन के यथार्थ को समझ पाने का साहस करते हुए क़लम को कागज़ से स्पर्श कराया था..!!
जहन के एहसासों को लिखते लिखते मन में सुकून भी आया था..!!
"पर कई दिनों से उधेड़बुन में हूँ..!!"
वर्षों पूर्व जिस प्रतियोगिता से स्वयं को अलग कर हमने सुकून पाया था..!!
वही प्रतियोगिता अब हर दिन एहसासों में, बातों में मुझे किसी ने सुनाया था..!!
"इसीलिये कई दिनों से उधेड़बुन में हूँ..!!"
हर चाल मेरी मेरे नाम की निशानी थी..!!
जो मेरे इर्द गिर्द के हर बच्चे की जुबानी थी..!!
आंदोलनकारी, क्रांतिकारी ऐसी मेरी कहानी थी..!!
लिखते लिखते मैं कुछ यूं लिख गया कि पढ़ने वालों के मन में ही रुक गया...किसी ने पढ़कर जाना मुझे, किसी ने पढ़कर माना मुझे..!!
"पर कई दिनों से उधेड़बुन में हूँ..!!"
राजनीति जिससे मैं लोगो के दिल पर राज कर सकूं,
ऐसी करनी थी मुझको..!!
शिक्षानीति जिसमें व्यक्तित्व का निखार हो,
ऐसी करनी थी मुझको..!!
पर लोगों को ये रास न आई क्योंकि टेक्नोलॉजी ने जीवनचक्र की गति यूं बढ़ाई, कि सबकी होने लगी कमाई..!! मैंने दी सबको बधाई...खिलाई सबको मिठाई..!! क्योंकि आने वाला वक़्त में मिलेगी सबको खाई..!!
"इसीलिये कई दिनों से उधेड़बुन में हूँ..!!"
नोट: नोट को ही पढ़ने वालों मैं कई दिनों से उधेड़बुन में हूँ..!!
© Nikhil S Yuva
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